tag:blogger.com,1999:blog-1032625403693339532024-03-20T13:38:18.438+05:30 हमारे पौधेदोस्तों इस वेबसाइट पर आपको पौधों से जुडी हर प्रकार की जानकारी मिलेगी। हम रोज आप तक पौधो से जुड़े रोचक तथ्य पंहुचाते रहेंगे। सभी किसान भाइयों से निवेदन है कि आप खेती से निराश होकर कोई गलत कदम ना उठायें। हमारे लिए आप किसी भगवान से कम नही हो अगर आपको खेती करने में किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत या परेशानी आ रही है तो कम से कम एक बार हमसे सम्पर्क जरुर करें। हम अपनी तरफ से हरसम्भव मदद करने की कोशिश करेंगे।Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-51647443880730733992018-01-17T22:08:00.002+05:302018-01-19T17:07:34.759+05:30बिहार महिला मशरूम के जादू के माध्यम से स्वयं को बदल रहे हैं (Bihar Women Are Transforming Themselves Through the Magic of Mushrooms)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #38761d;">बिहार में सर्दी का ठंडा अनीता देवी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट लाता है। यह उसकी मदद करेगा, अनंतपुर में सैकड़ों अन्य महिलाओं और नालंदा जिले के 10 पड़ोसी गांवों के साथ, अधिक जैविक मशरूम विकसित करेंगी।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">मशरूम की खेती को बड़े पैमाने पर लेने से, आसपास के अन्य ग्रामीण महिलाओं की तरह अनीता ने अपने परिवार के लिए एक स्थिर आय सुनिश्चित की है।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">आय उत्पन्न करने वाले लोगों के लिए सम्मानित, मशरूम के किसानों ने अपने परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर तरीके से बदल दिया है। "मशरूम की खेती ने मुझे और अन्य सैकड़ों अन्य महिलाओं को सशक्त नहीं किया है, हमने अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है," अनीता ने 40 के दशक के अंत में और उसके घर के निकट अपने कार्यालय के एक कार्यकारी की तरह बोलते हुए <a href="http://villagesquare.in/">VillageSquare.in</a> को बताया।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<b><span style="background-color: cyan; color: orange;">"मशरूम के बढ़ने के लिए धन्यवाद, गांवों में महिलाएं अब कमाई कर रही हैं, और अब अपने पति और परिवार पर निर्भर नहीं रहती हैं।"</span></b><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">अनीता ने शब्दों को समझाने के साथ-साथ उसने अपनी खुद की किस्मत बदल दी है और पिछले सात सालों में मशरूम की खेती से सैकड़ों अन्य स्त्रियों की किस्मत भी बदली है। वह अब अनंतपुर के अपने मूल गांव और नालंदा जिले के चंडी ब्लॉक के तहत पड़ोसी गांवों में मशरूम को विकसित करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाओं को प्रेरित करने और प्रोत्साहित करने के लिए प्रसिद्ध है।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">जब उसने 2010 में मशरूम विकसित करने की अपनी यात्रा शुरू की, तो रास्ता मुश्किल और अप्रिय था। यह अपने गांव में एक पूरी तरह से नई अवधारणा थी वह उत्तराखंड में कृषि और प्रौद्योगिकी के जी.बी. पंत विश्वविद्यालय और पूषा , समस्तीपुर जिले के डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में बढ़ते मशरूम में प्रशिक्षित हुए और मशरूम के बीज उत्पादन के बारे में भी सीखा।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<b><span style="background-color: cyan; color: orange;">"जब मैं कुछ हासिल करने के लिए बेताब थी, तब मैंने नालंदा में कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत से संपर्क किया। अधिकारियों ने मुझे मशरूम विकसित करने की सलाह दी इसके बाद, मैंने सफलता की मेरी नई यात्रा शुरू की। "</span></b><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<br>
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: lime;">सफलता के फल :-</span></h3>
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpYsZq4MdyxIgrbcNmM81BPebBkh78laxG5Q9XkT03f026nqTanXyxPvo27oOlxVBUMTF6D2FzlwtL0rcDRnXTJ2GxzW79xnXWwXFm7WILgbtOG-4AZ4uAlm0fmVYnZVqgEsQLtvOrJvM/s1600/Mushroom1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="550" data-original-width="1024" height="340" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpYsZq4MdyxIgrbcNmM81BPebBkh78laxG5Q9XkT03f026nqTanXyxPvo27oOlxVBUMTF6D2FzlwtL0rcDRnXTJ2GxzW79xnXWwXFm7WILgbtOG-4AZ4uAlm0fmVYnZVqgEsQLtvOrJvM/s640/Mushroom1.jpg" width="640"></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="color: red;">अनीता देवी एक सफल मशरूम किसान और बीज उद्यमी बन गए हैं। (मोहम्मद इमरान खान द्वारा फोटो)</span></td></tr>
</tbody></table>
<br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">अनीता के मशरूम खेती ने अपने परिवार को बदल दिया है। मशरूम की खेती से सम्मानित लाभ के साथ, अनिता के पति ने पास माधोपुर बाजार में एक परिधान दुकान खोल दी है। उनके दो बेटे बागवानी में स्नातक स्तर की पढ़ाई कर रहे हैं और उनकी एकमात्र बेटी बीएड कर रही है।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;">"कुछ सह-ग्रामीण, विशेष रूप से महिलाएं, गोबर चट्टा के बढ़ने के लिए मुझे ताना करती थी, क्योंकि जंगली मशरूम स्थानीय रूप से जाना जाता है। उन्होंने मुझसे यह कहकर शर्मिंदा करने का अवसर नहीं छोड़ा कि यह मेरी जिंदगी को बदलने में मेरी मदद नहीं करेगा। "</span><br>
<span style="color: #38761d;"> गृह विज्ञान में स्नातक अनीता ने VillageSquare.in को बताया।</span><br>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<span style="color: #38761d;"><br></span>
<b><span style="background-color: cyan; color: orange;">"शुरुआती दिनों में इस सब को अनदेखा करते हुए, मशरूम की खेती सफल साबित हुई और मैं दूसरों के लिए एक आदर्श के रूप में उभरने के लिए भाग्यशाली हूं जो कई महिलाओं को शामिल करने और मेरे पीछे आने के लिए प्रेरणा देता है। अब यहां सैकड़ों महिलाएं बढ़ती मशरूम की किसान हैं। "</span></b><br>
<span style="color: #38761d;"></span><br>
</div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2018/01/bihar-women-are-transforming-themselves.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-10276086017854800652018-01-13T13:04:00.001+05:302018-01-17T22:11:23.348+05:30गेहूं की खेती (Wheat)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="blogaway-section">
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: center;">
<u><span style="color: lime;"> गेहूँ (Wheat)</span></u></h2>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Kingdom </span></b><b><span style="color: #274e13;">–</span></b><b><span style="color: #274e13;"> Plantae – Plants</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Subkingdom </span></b><b><span style="color: #274e13;">– </span></b><b><span style="color: #274e13;">Tracheobionta – Vascular plants</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Superdivision </span></b><b><span style="color: #274e13;">–</span></b><b><span style="color: #274e13;"> Spermatophyta – Seed plants</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Division </span></b><b><span style="color: #274e13;">– </span></b><b><span style="color: #274e13;">Magnoliophyta – Flowering plants</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Class </span></b><b><span style="color: #274e13;">–</span></b><b><span style="color: #274e13;"> Liliopsida – Monocotyledons</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Subclass </span></b><b><span style="color: #274e13;">–</span></b><b><span style="color: #274e13;"> Commelinidae</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Order </span></b><b><span style="color: #274e13;">– </span></b><b><span style="color: #274e13;">Cyperales</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Family </span></b><b><span style="color: #274e13;">– </span></b><b><span style="color: #274e13;">Poaceae – Grass family</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;"><b><span style="color: #274e13;">Genus </span></b><b><span style="color: #274e13;">–</span></b><b><span style="color: #274e13;"> Triticum L. – wheat P</span></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoPyB12mkg4_dxH0ZZG79kDN-5YsBclE0jE-ro1G7GOx5Jfpkg1HBDdjRewXz1zDNqv81GMTKip3VSpb67GtzAL9KdciIT5s1ddroZQ5bhAoXmb0bTRVMCarr2YDNTCXf1xkr6njkxnlw/s1600/growing-wheat.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: left;"><img border="0" data-original-height="1063" data-original-width="1600" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoPyB12mkg4_dxH0ZZG79kDN-5YsBclE0jE-ro1G7GOx5Jfpkg1HBDdjRewXz1zDNqv81GMTKip3VSpb67GtzAL9KdciIT5s1ddroZQ5bhAoXmb0bTRVMCarr2YDNTCXf1xkr6njkxnlw/s400/growing-wheat.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="background-color: #cc0000; color: lime;">गेहूं छोटी अवस्था में</span></td></tr>
</tbody></table>
</div>
<span style="color: magenta;"></span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: magenta;"> गेहूँ की खेती विश्व के प्रायः हर भाग में होती है । संसार की कुल 23 प्रतिशत भूमि पर गेहूँ की खेती की जाती है । गेहूँ विश्वव्यापी महत्त्व की फसल है। मुख्य रूप से एशिया में धान की खेती की जाती है, तो भी विश्व के सभी प्रायद्वीपों में गेहूँ उगाया जाता है। विश्व में सबसे अधिक क्षेत्र फल में गेहूँ उगाने वाले प्रमुख तीन राष्ट्र भारत, रशियन फैडरेशन और संयुक्त राज्य अमेरिका है । गेहूँ उत्पादन में चीन के बाद भारत तथा अमेरिका का क्रम आता है ।</span></div>
<span style="color: magenta;">
</span>
<br />
<br />
<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>उपयुक्त जलवायु क्षेत्र :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> गेहूँ मुख्यतः एक ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है अतः फसल बोने के समय 20 से 22 डि से , बढ़वार के समय इष्टतम ताप 25 डि से तथा पकने के समय 14 से 15 डि से तापक्रम उत्तम रहता है। तापमान से अधिक होने पर फसल जल्दी पाक जाती है और उपज घट जाती है। पाले से फसल को बहुत नुकसान होता है । बाली लगने के समय पाला पड़ने पर बीज अंकुरण शक्ति खो देते है और उसका विकास रूक जाता है । छोटे दिनो में पत्तियां और कल्लो की बाढ़ अधिक होती है जबकि दिन बड़ने के साथ-साथ बाली निकलना आरम्भ होता है। इसकी खेती के लिए 60-100 से. मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते है। पौधों की वृद्धि के लिए वातावरण में 50-60 प्रतिशत आर्द्रता उपयुक्त पाई गई है। ठण्डा शीतकाल तथा गर्म ग्रीष्मकाल गेंहूँ की बेहतर फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है । गर्म एवं नम जलवायु गेहूँ के लिए उचित नहीं होती, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में फसल में रोग अधिक लगते है।</span><br />
<br />
<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">भूमि का चयन:- </span></b><br />
<span style="color: magenta;"> गेहूँ सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमियों में पैदा हो सकता है परन्तु दोमट से भारी दोमट, जलोढ़ मृदाओ मे गेहूँ की खेती सफलता पूर्वक की जाती है। जल निकास की सुविधा होने पर मटियार दोमट तथा काली मिट्टी में भी इसकी अच्छी फसल ली जा सकती है। कपास की काली मृदा में गेहूँ की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है। भूमि का पी. एच. मान 5 से 7.5 के बीच में होना फसल के लिए उपयुक्त रहता है क्योंकि अधिक क्षारीय या अम्लीय भूमि गेहूं के लिए अनुपयुक्त होती है। </span><br />
<br />
<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">खेत की तैयारी:- </span></b><br />
<span style="color: magenta;"> अच्छे अंकुरण के लिये एक बेहतर भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। समय पर जुताई खेत में नमी संरक्षण के लिए भी आवश्यक है। वास्तव में खेत की तैयारी करते समय हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि बोआई के समय खेत खरपतवार मुक्त हो, भूमि में पर्याप्त नमी हो तथा मिट्टी इतनी भुरभुरी हो जाये ताकि बोआई आसानी से उचित गहराई तथा समान दूरी पर की जा सके। खरीफ की फसल काटने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल (एमबी प्लोऊ ) से करनी चाहिए जिससे खरीफ फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी मे दबकर सड़ जायें। इसके बाद आवश्यकतानुसार 2-3 जुताइयाँ देशी हल - बखर या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा देकर खेत समतल कर लेना चाहिए। </span><br />
<div>
<span style="color: magenta;"><br /></span></div>
<div>
<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">उन्नत किस्में :-</span></b><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> फसल उत्पादन मे उन्नत किस्मों के बीज का महत्वपूर्ण स्थान है। गेहूँ की किस्मों का चुनाव जलवायु, बोने का समय और क्षेत्र के आधार पर करना चाहिए।</span><br />
<br />
<b style="background-color: yellow;"><span style="color: lime;">गेहूँ की प्रमुख उन्नत किस्मो की विशेषताएं :-</span></b><br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">1.रतन: </span><span style="color: magenta;">इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित यह किस्म सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 112 दिन में पकती है। दाना गोल होता है। सूखा व गेरूआ रोधक किस्म है जो औसतन 19 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 2.अरपा:</span><span style="color: magenta;"> इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय द्वारा विकसित यह किस्म देर से बोने के लिए सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 112 दिन में पकती है। दाना अम्बर रंग का होता है। अधिक तापमान, गेरूआ रोग व कटुआ कीट रोधक किस्म है जो औसतन 23-24 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 3.नर्मदा 4: </span><span style="color: magenta;">यह पिसी सरबती किस्म, काला और भूरा गेरूआ निरोधक है। यह असिंचित एवं सीमित सिंचाई क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इसके पकने का समय 125 दिन हैं इसकी पैदावार 12-19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना सरबती चमकदार होता है। यह चपाती बनाने के लिये विशेष उपयुक्त है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;">4. एन.पी.404:</span><span style="color: magenta;"> यह काला और भूरा गेरूआ निरोधक कठिया किस्म असिंचित दशा के लिये उपयुक्त है। यह 135 दिन मे पक कर तैयार होती है। पैदावार 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है। इसका दाना बड़ा, कड़ा और सरबती रंग का होता है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 5. मेघदूत:</span><span style="color: magenta;"> यह काला और भूरा गेरूआ निरोधक कठिया जाति असिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त है। इसके पकने का समय 135 दिन है। इसकी पदौवार 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका दाना एन.पी.404 से कड़ा होता है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 6.हायब्रिड 65:</span><span style="color: magenta;"> यह पिसिया किस्म है, जो भूरा गेरूआ निरोधक है। यह 130 दिन में पकती है। इसकी पैदावार असिंचित अवस्था में 13 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है। इसका दाना, सरबती, चमकदार, 1000 बीज का भार 42 ग्राम होता है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 7.मुक्ता:</span><span style="color: magenta;"> यह पिसिया किस्म है जो भूरा गेरूआ निरोधक है। असिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त है। यह 130 दिन में पकती है। इसकी पैदावार 13 - 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका दाना सरबती लम्बा और चमकदार होता है।<br /><br /> </span><span style="color: lime;"> 8.सुजाता:</span><span style="color: magenta;"> यह पिसिया (सरबती) किस्म काला और भूरा गेरूआ सहनशील है। असिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त है। यह 130 दिन में पकती है। इसकी पैदावा 13 - 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका दाना, सरबती, मोटी और चमकदार होता है।</span><br />
<div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoPyB12mkg4_dxH0ZZG79kDN-5YsBclE0jE-ro1G7GOx5Jfpkg1HBDdjRewXz1zDNqv81GMTKip3VSpb67GtzAL9KdciIT5s1ddroZQ5bhAoXmb0bTRVMCarr2YDNTCXf1xkr6njkxnlw/s1600/growing-wheat.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><br /></a><span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 9.सोनालिका: </span><span style="color: magenta;">यह गेरूआ निरोधक, अंबर रग की, बड़े दाने वाले किस्म। यह 110 दिनों में पककर तैयार हो जाता है। देर से बोने के लिए उपयुक्त है। धान काटने के बाद जमीन तैयार कर बुवाई की जा सकती है। इसकी पैदावार 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">10.कल्याण सोना (एच.डी.एम.1593):</span><span style="color: magenta;"> इसका दाना चमकदार, शरबती रंग का होता है। यह किस्म 125 दिन मे पक जाती है। पैदावार प्रति हेक्टेयर 30 से 35 क्विंटल तक होती है। गेरूआ रोग से प्रभावित यह किस्म अभी भी काफी प्रचलित है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 11.नर्मदा 112:</span><span style="color: magenta;"> यह पिसिया (सरबती) किस्म है जो काला और भूरा गेरूआ निरोधक है। असिंचित एवं सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त है।इसके पकने का समय 120 - 135 दिन है। इसकी पैदावार 14 - 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसका दाना सरबती चमकदार और बड़ा होता है। इह चपाती बनाने के लिए विशेष उपयुक्त है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">12.डब्ल्यू.एच. 147: </span><span style="color: magenta;">यह बोनी पिसी किस्म काला और भूरा गेरूआ निरोधक है। सिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त है। बाले गसी हुई मोटी होती है। इसका पकने का समय 125 दिन होता है। इसका दाना मोटा सरबती होता है। इसकी पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 13.एच.डी. 4530:</span><span style="color: magenta;"> यह बोनी कठिया किस्म काला और भूरा गेरूआ निरोधक है। सिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त है। बाले गसी हुई और मोटी होती है। इसका पकने का समय 130 दिन होता है। इसका दाना मोटा, सरबती और कड़क होता है। इसकी पैदावार 35 क्विंटल/ हेक्टेयर होती है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">14. शेरा (एच.डी.1925): </span><span style="color: magenta;">देर से बोने के लिए यह जाति उपयुक्त है। यह गेरूआॅ निरोधक है यह कम समय 110 दिन में पक जाती है। इसका दाना आकर्षक होता है।इसकी पैदावार लगभग 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 15. जयराज:</span><span style="color: magenta;"> इसकी ऊँचाई 100 से. मी. है। यह जाति 115 दिन मे पकती है। इसके दाने सरबती मोटे (1000 दानो का भार 49 ग्राम) व चमकदान होते है। यह गेरूआ प्रतिबंधक सिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त है। यह किस्म दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक बोई जा सकती है। इसकी पैदावार 38 से 40 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">16. जे.डब्लू.-7:</span><span style="color: magenta;"> यह देर से तैयार (130 - 135 दिन) होने वाली किस्म है। बीज सरबती, मुलायम से हल्के कड़े (1000 बीज का भार 46 ग्राम) होते है। रोटी हेतु उत्तम , सी - 306 से अधिक प्रोटीन होता है। इसकी औसत उपज 23 - 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।</span><br />
<br />
<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">गेहूँ की नवीन उन्नत किस्म :-</span></b><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">1. जे.डब्लू.-1106:</span><span style="color: magenta;"> यह मध्यम अवधि (115 दिन) वाली किस्म है जिसके पौधे सीधे मध्यम ऊँचाई के होते है। बीज का आकार सिंचित अवस्था में बड़ा व आकर्षक होता है। सरबती तथा अधिक प्रोटीन युक्त किस्म है जिसकी आसत उपज 40 - 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">2. अमृता (एच.आई. 1500):</span><span style="color: magenta;"> यह सरबती श्रेणी की नवीनतम सूखा निरोधक किस्म है। इसका पौधा अर्द्ध सीधा तथा ऊँचाई 120 - 135 से. मी. होती है। दाने मध्यम गोल, सुनहरा (अम्बर) रंग एवं चमकदार होते है। इसके 1000 दानों का वजन 45 - 48 ग्राम और बाल आने का समय 85 दिन है। फसल पकने की अवधि 125 - 130 दिन तथा आदर्श परिस्थितियों में 30 - 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 3. स्वर्णा (एच.आई.-1479):</span><span style="color: magenta;"> समय से बोने हेतु मध्य प्रदेश की उर्वरा भूमियो के लिए शीघ्र पकने वाली गेरूआ निरोधक किस्म है। गेहू का दाना लम्बा, बोल्ड, आकर्षक, सरबती जैसा चमकदार व स्वादिष्ट होता है। इसके 1000 दानो का वजन 45 - 48 ग्राम होता है। फसल अवधि 110 दिन हे। इस किस्म से 2 - 3 सिंचाइयों से अच्छी उपज ली जा सकती है। गेहूँ की लोक-1 किस्म के विकल्प के रूप में इसकी खेती की जा सकती है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 4. हर्षित (एचआई-1531): </span><span style="color: magenta;">यह सूखा पाला अवरोधी मध्यम बोनी (75 - 90 से. मी. ऊँचाई) सरबती किस्म है। इसके दाने सुडौल, चमकदार, सरबती एवं रोटी के लिए उत्तम है जिसे सुजाता किस्म के विकल्प के रूप में उगाया जा सकता है। फसल अवधि 115 दिन है तथा 1 - 2 सिंचाई में 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक उपज देती है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">5. मालव शक्ति (एचआई - 8498): </span><span style="color: magenta;">यह कम ऊँचाई वाली (85 से.मी) बोनी कठिया (ड्यूरम) किस्म है। यह नम्बर - दिसम्बर तक बोने हेतु उपयुक्त किस्म है। इसका दाना अत्यन्त आकर्षक, बड़ा, चमकदार, प्रोटीन व विटामिन ए की मात्रा अधिक, अत्यन्त स्वादिष्ट होता है। बेकरी पदार्थ, नूडल्स, सिवैया, रवा आदि बनाने के लिए उपयुक्त है। बाजार भाव अधिक मिलता है तथा गेहूँ निर्यात के लिए उत्तम किस्म है। इसकी बोनी नवम्बर से लेकर दिसम्बर के द्वितीय सप्ताह तक की जा सकती है। इसकी फसल लोक-1 से पहले तैयार हो जाती है। इससे अच्छी उपज लेने के लिए 4 - 5 पानी आवश्यक है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">6. मालवश्री (एचआई - 8381):</span><span style="color: magenta;"> यह कठिया गेहूँ की श्रेणी में श्रेष्ठ किस्म है। इसके पौधे बौने (85 - 90 से.मी. ऊँचाई), बालियों के बालों का रंग काला होता है। यह किस्म 4 - 5 सिंचाई मे बेहतर उत्पादन देती है। इसके 1000 दानों का वजन 50 - 55 ग्राम एवं उपज क्षमता 50 - 60 क्विंटल प्रति हेक्टर है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">7. राज-3077 </span><span style="color: magenta;">गेहूँ की ऐसी नयी किस्म है, जिसमें अन्य प्रजातियों की अपेक्षा 12 प्रतिशत अधिक प्रोटीन पाया जाता है। इसे अम्लीय एवं क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में बोया जा सकता है।</span><br />
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<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">बीजोपचार :-</span></b><br />
<span style="color: magenta;"> बुआई के लिए जो बीज इस्तेमाल किया जाता है वह रोग मुक्त, प्रमाणित तथा क्षेत्र विशेष के लिए अनुशंषित उन्नत किस्म का होना चाहिए। अलावा रोगों की रोकथाम के लिए ट्राइकोडरमा की 4 ग्राम मात्रा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के साथ प्रति किग्रा बीज की दर से बीज शोधन किया जा सकता है ।</span><br />
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<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">बोआई का समय :-</span></b><br />
<span style="color: magenta;"> गेंहूँ रबी की फसल है जिसे शीतकालीन मौसम में उगाया जाता है । भारत के विभिन्न भागो में गेहूँ का जीवन काल भिन्न-भिन्न रहता है । सामान्य तौर पर गेहूं की बोआई अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है तथा फसल की कटाई फरवरी से मई तक की जाती है । जिन किस्मों की अवधि 135 - 140 दिन है, उनको नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में व जो किस्में पकने में 120 दिन का समय लेती है, उन्हे 15 - 30 नवम्बर तक बोना चाहिए। गेहूँ की शीघ्र बुवाई करने पर बालियाँ पहले निकल आती है तथा उत्पादन कम होता है जबकि तापक्रम पर बुवाई करने पर अंकुरण देर से होता है । प्रयोगो से यह देखा गया है कि लगभग 15 नवम्बर के आसपास गेहूँ बोये जाने पर अधिकतर बौनी किस्में अधिकतम उपज देती है । अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में बोयी गई लंबी किस्मो से भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है । असिंचित अवस्था में बोने का उपयुक्त समय बर्षा ऋतु समाप्त होते ही मध्य अक्टूबर के लगभग है। अर्द्धसिंचित अवस्था मे जहाँ पानी सिर्फ 2 - 3 सिंचाई के लिये ही उपलब्ध हो, वहाँ बोने का उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक है। सिंचित गेहूँ बोने का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है। बोनी में 30 नवम्बर से अधिक देरी नहीं होना चाहिए। यदि किसी कारण से बोनी विलंब से करनी हो तब देर से बोने वाली किस्मो की बोनी दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक हो जाना चाहिये। देर से बोयी गई फसल को पकने से पहले ही सूखी और गर्म हवा का सामना करना पड़ जाता है जिससे दाने सिकुड़ जाते है तथा उपज कम हो जाती है ।</span><br />
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<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">बीज दर एवं पौध अंतरण :-</span></b><br />
<span style="color: magenta;"> चुनी हुई किस्म के बड़े-बड़े साफ, स्वस्थ्य और विकार रहित दाने, जो किसी उत्तम फसल से प्राप्त कर सुरंक्षित स्थान पर रखे गये हो , उत्तम बीज होते है । बीज दर भूमि मे नमी की मात्रा, बोने की विधि तथा किस्म पर निर्भर करती है। बोने गेहूँ की खेती के लिए बीज की मात्रा देशी गेहूँ से अधिक होती है । बोने गेहूँ के लिए 100-120 किग्रा. प्रति हैक्टर तथा देशी गेहूँ के लिए 70-90 किग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से बोते है । असिंचित गेहूँ के लिए बीज की मात्रा 100 किलो प्रति हेक्टेर व कतारों के बीच की दूरी 22 - 23 से. मी. होनी चाहिये। समय पर बोये जाने वाले सिंचित गेहूं मे बीज दरं 100 - 125 किलो प्रति हेक्टेयर व कतारो की दूरी 20-22.5 से. मी. रखनी चाहिए। देर वाली सिंचित गेहूं की बोआई के लिए बीज दर 125 - 150 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पंक्तियों के मध्य 15 - 18 से. मी. का अन्तरण रखना उचित रहता है। बीज को रात भर पानी में भिंगोकर बोना लाभप्रद है। भारी चिकनी मिट्टी में नमी की मात्रा आवश्यकता से कम या अधिक रहने तथा बोआई में बहुत देर हो जाने पर अधिक बीज बोना चाहिए । मिट्टी के कम उपजाऊ होने या फसल पर रोग या कीटो से आक्रमण की सम्भावना होने पर भी बीज अधिक मात्रा में डाले जाते है ।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> प्रयोगों में यह देखा गया है कि पूर्व - पश्चिम व उत्तर - दक्षिण क्रास बोआई करने पर गेहूँ की अधिक उपज प्राप्त होती है। इस विधि में कुल बीज व खाद की मात्रा, आधा - आधा करके उत्तर - दक्षिण और पूर्व - पश्चिम दिशा में बोआई की जाती है। इस प्रकार पौधे सूर्य की रोशनी का उचित उपयोग प्रकाश संश्लेषण मे कर लेते है, जिससे उपज अधिक मिलती है। गेहूँ मे प्रति वर्गमीटर 400 - 500 बालीयुक्त पौधे होने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।</span><br />
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<b><span style="background-color: yellow; color: lime;">बीज बोने की गहराई :-</span></b><br />
<span style="color: magenta;"> बौने गेहुँ की बोआई में गहराई का विशेष महत्व होता है, क्योंकि बौनी किस्मों में प्राकुंरचोल की लम्बाई 4 - 5 से. मी. होती है। अतः यदि इन्हे गहरा बो दिया जाता है तो अंकुरण बहुत कम होता है। गेहुँ की बौनी किस्मों को 3-5 से.मी. रखते है । देशी (लम्बी) किस्मों में प्रांकुरचोल की लम्बाई लगभग 7 सेमी. होती है । अतः इनकी बोने की गहराई 5-7 सेमी. रखनी चाहिये।</span><br />
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<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>बोआई की विधियाँ :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> आमतौर पर गेहूँ की बोआई चार बिधियो से (छिटककर, कूड़ में चोगे या सीड ड्रिल से तथा डिबलिंग) से की जाती है । गेहूं बोआई हेतु स्थान विशेष की परिस्थिति अनुसार विधियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैः</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><b><span style="color: lime;">1. छिटकवाँ विधि :</span></b><span style="color: magenta;"> इस विधि में बीज को हाथ से समान रूप से खेत में छिटक दिया जाता है और पाटा अथवा देशी हल चलाकर बीज को मिट्टी से ढक दिया जाता है। इस विधि से गेहूँ उन स्थानो पर बोया जाता है, जहाँ अधिक वर्षा होने या मिट्टी भारी दोमट होने से नमी अपेक्षाकृत अधिक समय तक बनी रहती है । इस विधि से बोये गये गेहूँ का अंकुरण ठीक से नही हो पाता, पौध अव्यवस्थित ढंग से उगते है, बीज अधिक मात्रा में लगता है और पौध यत्र्-तत्र् उगने के कारण निराई - गुड़ाई में असुविधा होती है परन्तु अति सरल विधि होने के कारण कृषक इसे अधिक अपनाते है ।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"><b>2. हल के पीछे कूड़ में बोआई :</b></span><span style="color: magenta;"> गेहूँ बोने की यह सबसे अधिक प्रचलित विधि है । हल के पीछे कूँड़ में बीज गिराकर दो विधियों से बुआई की जाती है -</span><br />
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<span style="color: lime;">(अ) हल के पीछे हाथ से बोआई (केरा विधि):</span><span style="color: magenta;"> इसका प्रयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ बुआई अधिक रकबे में की जाती है तथा खेत में पर्याप्त नमी रहती हो । इस विधि मे देशी हल के पीछे बनी कूड़ो में जब एक व्यक्ति खाद और बीज मिलाकर हाथ से बोता चलता है तो इस विधि को केरा विधि कहते है । हल के घूमकर दूसरी बार आने पर पहले बने कूँड़ कुछ स्वंय ही ढंक जाते है । सम्पूर्ण खेत बो जाने के बाद पाटा चलाते है, जिससे बीज भी ढंक जाता है और खेत भी चोरस हो जाता है ।</span><br />
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<span style="color: lime;">(ब) देशी हल के पीछे नाई बाँधकर बोआई (पोरा विधि):</span><span style="color: magenta;"> इस विधि का प्रयोग असिंचित क्षेत्रों या नमी की कमी वाले क्षेत्रों में किया जाता है। इसमें नाई, बास या चैंगा हल के पीछे बंधा रहता है। एक ही आदमी हल चलाता है तथा दूसरा बीज डालने का कार्य करता है। इसमें उचित दूरी पर देशी हल द्वारा 5 - 8 सेमी. गहरे कूड़ में बीज पड़ता है । इस विधि मे बीज समान गहराई पर पड़ते है जिससे उनका समुचित अंकुरण होता है। कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए देशी हल के स्थान पर कल्टीवेटर का प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि कल्टीवेटर से एक बार में तीन कूड़ बनते है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"><b>3. सीड ड्रिल द्वारा बोआई: </b></span><span style="color: magenta;">यह पोरा विधि का एक सुधरा रूप है। विस्तृत क्षेत्र में बोआई करने के लिये यह आसान तथा सस्ता ढंग है । इसमे बोआई बैल चलित या ट्रेक्टर चलित बीज वपित्र द्वारा की जाती है। इस मशीन में पौध अन्तरण व बीज दर का समायोजन इच्छानुसार किया जा सकता है। इस विधि से बीज भी कम लगता है और बोआई निश्चित दूरी तथा गहराई पर सम रूप से हो पाती है जिससे अंकुरण अच्छा होता है । इस विधि से बोने में समय कम लगता है ।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"><b>4. डिबलर द्वारा बोआईः</b></span><span style="color: magenta;"> इस विधि में प्रत्येक बीज को मिट्टी में छेदकर निर्दिष्ट स्थान पर मनचाही गहराई पर बोते है । इसमें एक लकड़ी का फ्रेम को खेत में रखकर दबाया जाता है तो खूटियो से भूमि मे छेद हो जाते हैं जिनमें 1-2 बीज प्रति छेद की दर से डालते हैं। इस विधि से बीज की मात्रा काफी कम (25-30 किग्रा. प्रति हेक्टर) लगती है परन्तु समय व श्रम अधिक लगने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><b><span style="color: lime;"> 5. फर्ब विधि : </span></b><span style="color: magenta;">इस विधि में सिंचाई जल बचाने के उद्देश्य से ऊँची उठी हुई क्यारियाँ तथा नालियाँ बनाई जाती है । क्यारियो की चोड़ाई इतनी रखी जाती है कि उस पर 2-3 कूड़े आसानी से बोई जा सके तथा नालियाँ सिंचाई के लिए प्रयोग में ली जाती है । इस प्रकार लगभग आधे सिंचाई जल की बचत हो जाती है । इस विधि में सामान्य प्रचलित विधि की तुलना में उपज अधिक प्राप्त होती है । इसमें ट्रैक्टर चालित यंत्र् से बुवाई की जाती है । यह यंत्र् क्यारियाँ बनाने, नाली बनाने तथा क्यारी पर कूंड़ो में एक साथ बुवाई करने का कार्य करता है ।</span><br />
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<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"><b> 6.शून्य कर्षण सीड ड्रिल विधि: </b></span><span style="color: magenta;">धान की कटाई के उपरांत किसानों को रबी की फसल गेहूं आदि के लिए खेत तैयार करने पड़ते हैं। गेहूं के लिए किसानों को अमूमन 5-7 जुताइयां करनी पड़ती हैं। ज्यादा जुताइयों की वजह से किसान समय पर गेहूं की बोआई नहीं कर पाते, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है। इसके अलावा इसमें लागत भी अधिक आती है। ऐसे में किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। शून्य कर्षण से किसानों का समय तो बचता ही है, साथ ही लागत भी कम आती है, जिससे किसानों का लाभ काफी बढ़ जाता है। इस विधि के माध्यम से खेत की जुताई और बिजाई दोनों ही काम एक साथ हो जाते हैं। इससे बीज भी कम लगता है और पैदावार करीब 15 प्रतिशत बढ़ जाती है। खेत की तैयारी में लगने वाले श्रम व सिंचाई के रूप में भी करीब 15 प्रतिशत बचत होती है। इसके अलावा खरपतवार प्रकोप भी कम होता है, जिससे खरपतवारनाशकों का खर्च भी कम हो जाता है। समय से बुआई होने से पैदावार भी अच्छी होती है। </span></div>
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<span style="color: magenta;"><br /></span></div>
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<span style="color: red;"><b>जीरो टिल सीड ड्रिल मशीन :-</b></span><span style="color: magenta;"><b> </b>यह गो .पं.कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित एक ऐसी मशीन है जिसकी मदद से धान की फसल की कटाई के तुरन्त बाद नमीयुक्त खेत में बिना खेत की तैयारी किये सीधे गेहूँ की बुवाई की जा सकती है । इसमें लगे कूंड बनाने वाले फरो-ओपरन के बीच की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है। यह मशीन गेहूं और धान के अलावा दलहन फसलों के लिए भी बेहद उपयोगी है। इससे दो घंटे में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की जा सकती है। इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर शक्ति के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है। मशीन में फाल की जगह लगे दांते मानक गहराई तक मिट्टी को चीरते हैं। इसके साथ ही मशीन के अलग-अलग चोंगे में रखा खाद और बीज कूंड़ में गिरता जाता है।</span><br />
<br />
<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>खाद एवं उर्वरक :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> फसल की प्रति इकाई पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है । गेहूँ में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है । खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूँ की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है।अच्छी उपज लेने के लिए भूमि में कम से कम 35-40 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद 50 किलो ग्राम नीम की खली और 50 किलो अरंडी की खली आदि इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई से पहले इस मिश्रण को समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद खेत में अच्छी तरह से जुताई कर खेत को तैयार करें इसके उपरांत बुवाई करें | </span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> खेत में 10-15 टन प्रति हेक्टर की दर से सडी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट फैलाकर जुताई के समय बो आई पूर्व मिट्टी में मिला देना चाहिए । रासायनिक उर्वरको में नाइट्रोजन, फास्फोरस , एवं पोटाश मुख्य है । सिंचित गेहूँ में (बौनी किस्में) बोने के समय आधार मात्रा के रूप में 125 किलो नत्रजन, 50 किलो स्फुर व 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिये। देशी किस्मों में 60:30:30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक देना चाहिए। असिंचित गेहूँ की देशी किस्मों मे आधार मात्रा के रूप में 40 किलो नत्रजन, 30 किलो स्फुर व 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर बोआई के समय हल की तली में देना चाहिये। बौनी किस्मों में 60:40:30 किलों के अनुपात में नत्रजन, स्फुर व पोटाश बोआई के समय देना लाभप्रद पाया गया है।</span><br />
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<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>सिंचाई :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> भारत मे लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूँ की खेती असिंचित दशा में की जाती है। परन्तु बौनी किस्मों से अधिकतम उपज के लिए सिंचाई आवश्यक है। गेहूँ की बौनी किस्मों को 30-35 हेक्टर से.मी. और देशी किस्मों को 15-20 हेक्टर से.मी. पानी की कुल आवश्यकता होती है। उपलब्ध जल के अनुसार गेहूँ में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर करनी चाहिये। प्रथम सिंचाई में औसतन 5 सेमी. तथा बाद की सिंचाईयों में 7.5 सेमी. पानी देना चाहिए। सिंचाईयो की संख्या और पानी की मात्रा मृदा के प्रकार, वायुमण्डल का तापक्रम तथा बोई गई किस्म पर निर्भर करती है । फसल अवधि की कुछ विशेष क्रान्तिक अवस्थाओं पर बौनी किस्मों में सिंचाई करना आवश्यक होता है। सिंचाई की ये क्रान्तिक अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं -</span><br />
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<span style="color: magenta;"> <b> 1. पहली सिंचाई शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था पर अर्थात बोने के 20 से 25 दिन पर सिंचाई करना चाहिये। लम्बी किस्मों में पहली सिंचाई सामान्यतः बोने के लगभग 30-35 दिन बाद की जाती है।</b></span><b><br /><br /><span style="color: magenta;"> 2. दूसरी सिंचाई दोजियां निकलने की अवस्था अर्थात बोआई के लगभग 40-50 दिन बाद।</span><br /><br /><span style="color: magenta;"> 3.तीसरी सिंचाई सुशांत अवस्था अर्थात ब¨आई के लगभग 60-70 दिन बाद ।</span><br /><br /><span style="color: magenta;"> 4. चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था अर्थात बोआई के 80-90 दिन बाद ।</span><br /><br /><span style="color: magenta;"> 5. दूध बनने तथा शिथिल अवस्था अर्थात बोने के 100-120 दिन बाद।</span></b><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> पर्याप्त सिंचाईयां उपलब्ध होने पर बौने गेहूं में 4-6 सिंचाई देना श्रेयस्कर होता है । यदि मिट्टी काफी हल्की या बलुई है त¨ 2-3 अतिरिक्त सिंचाईयो की आवश्यकता हो सकती है । सीमित मात्रा में जलापूर्ति की स्थित में सिंचाई का निर्धारण निम्नानुसार किया जाना चाहिए:</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> यदि केवल दो सिंचाई की ही सुविधा उपलब्ध है, तो पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद (शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था ) तथा दूसरी सिंचाई फूल आने के समय बोने के 80-90 दिन बाद करनी चाहिये।यदि पानी तीन सिंचाईयों हेतु उपलब्ध है तो पहली सिंचाई शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था पर (बोआई के 20-22 दिन बाद), दूसरी तने में गाँठें बनने (बोने क 60-70 दिन बाद) व तीसरी दानो में दूध पड़ने के समय (100-120 दिन बाद) करना चाहिये।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> गेहूँ की देशी लम्बी बढ़ने वाली किस्मो में 1-3 सिंचाईयाँ करते हैं। पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बोने के 60-65 दिन बाद और तीसरी सिंचाई बोने के 90-95 दिन बाद करते हैं ।</span><br />
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<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>असिंचित अवस्था में मृदा नमी का प्रबन्धन :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> खेत की जुताई कम से कम करनी चाहिए तथा जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए। जुताई का कार्य प्रातः व शायंकाल में करने से वाष्पीकरण द्वारा नमी का ह्रास कम होता है। खेत की मेड़बन्दी अच्छी प्रकार से कर लेनी चाहिए, जिससे वर्षा के पानी को खेत में ही संरक्षित किया ता सके। बुआई पंक्तियों में 5 सेमी. गहराई पर करना चाहिए। खाद व उर्वरकों की पूरी मात्रा, बोने के पहले कूड़ों में 10-12 सेमी. गहराई में दें। खरपतवारों पर समयानुसार नियंत्रण करना चाहिए।</span><br />
<br />
<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>खरपतवार नियंत्रण :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> गेहूँ के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते है। यदि इन पर नियंत्रण नही किया गया तो गेहूँ की उपज मे 10-40 प्रतिशत तक हानि संभावित है। बोआई से 30-40 दिन तक का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक क्रांतिक रहता है। गेहूँ के खेत में चैड़ी पत्ती वाले और घास कुल के खरपतावारों का प्रकोप होता है।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;"> 1. चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार: </span><span style="color: magenta;">कृष्णनील, बथुआ, हिरनखुरी, सैंजी, चटरी-मटरी, जंगली गाजर आदि के नियंत्रण हेतु 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36 प्रतिशत (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा अथवा 2,4-डी लवण 80 प्रतिशत (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा. मात्रा को 700-800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टर में बोनी के 25-30 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।</span><br />
<br />
<span style="color: magenta;"> </span><span style="color: lime;">2. सँकरी पत्ती वाले खरपतवार:</span><span style="color: magenta;"> गेहूँ में जंगली जई व गेहूँसा का प्रकोप अधिक देखा जा रहा है। यदि इनका प्रकोप अधिक हो तब उस खेत में गेहूँ न बोकर बरसीम या रिजका की फसल लेना लाभदायक है। इनके नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी (स्टाम्प) 800-1000 ग्रा. प्रति हेक्टर अथवा आइसोप्रोटयूरॉन 50 डब्लू.पी. 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर को बोआई के 2-3 दिन बाद 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. छिड़काव करें। खड़ी फसल में बोआई के 30-35 दिन बाद मेटाक्सुरान की 1.5 किग्रा. मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए। मिश्रित खरपतवार की समस्या होेने पर आइसोप्रोट्यूरान 800 ग्रा. और 2,4-डी 0.4 किग्रा. प्रति हे. को मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ व सरस¨ं की मिश्रित खेती में खरपतवार नियंत्र्ण हेतु पेन्डीमिथालिन सर्वाधिक उपयुक्त तृणनाशक है ।</span><br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZeoDz60jya0OCJB57QeHudouE13RazZl6tM-4CpA3y4cXIQfemDTiKbNLHYwX-q6XMTzb5I5ubKSSUDUzci7IPD0L4m8KgX-MPmlkKRBBaomjNrdwEsbGEQTPtnkcyCV4k7eVstOnEJs/s1600/smartbarley3.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="810" height="355" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZeoDz60jya0OCJB57QeHudouE13RazZl6tM-4CpA3y4cXIQfemDTiKbNLHYwX-q6XMTzb5I5ubKSSUDUzci7IPD0L4m8KgX-MPmlkKRBBaomjNrdwEsbGEQTPtnkcyCV4k7eVstOnEJs/s400/smartbarley3.jpg" width="400" /></a><br />
<span style="background-color: yellow; color: lime;"><b>कटाई-गहाई :-</b></span><br />
<span style="color: magenta;"> जब गेहूँ के दाने पक कर सख्त हो जाय और उनमें नमी का अंश 20-25 प्रतिशत तक आ जाये, फसल की कटाई करनी चाहिये। कटाई हँसिये से की जाती है। बोनी किस्म के गेहूँ को पकने के बाद खेत में नहीं छोड़ना चाहिये, कटाई में देरी करने से, दाने झड़ने लगते है और पक्षियों द्वारा नुकसान होने की संभावना रहती है। कटाई के पश्चात् फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखाकर मड़ाई शक्ति चालित थ्रेशर से की जाती है। कम्बाइन हारवेस्टर का प्रयोग करने से कटाई, मड़ाई तथा ओसाई एक साथ हो जाती है परन्तु कम्बाइन हारवेस्टर से कटाई करने के लिए, दानो में 20 प्रतिशत से अधिक नमी नही होनी चाहिए, क्योकि दानो में ज्यादा नमी रहने पर मड़ाई या गहाई ठीक से नहीं ह¨गी ।</span><br />
<br />
<span style="color: lime;"><b><span style="background-color: yellow;">उपज एवं भंडारण :-</span></b></span><br />
<span style="color: magenta;"> उन्नत सस्य तकनीक से खेती करने पर सिंचित अवस्था में गेहूँ की बौनी किस्मो से लगभग 50-60 क्विंटल दाना के अलावा 80-90 क्विंटल भूसा/हेक्टेयर प्राप्त होता है। जबकि देशी लम्बी किस्मों से इसकी लगभग आधी उपज प्राप्त होती है। देशी किस्मो से असिंचित अवस्था में 15-20 क्विंटल प्रति/हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। सुरक्षित भंडारण हेतु दानों में 10-12% से अधिक नमी नहीं होना चाहिए। भंडारण के पूर्ण क¨ठियों तथा कमरो को साफ कर लें और दीवालों व फर्श पर मैलाथियान 50% के घोल को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़कें। अनाज को बुखारी, कोठिलों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फास्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।</span></div>
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<span style="color: magenta;"><br /></span></div>
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: red;"> <b><i><u>Note :- </u></i></b>दोस्तों आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी हमें जरूर बताएं | और कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना और हमे गलती के बारे में जरूर बताइयेगा हम सुधार करने की पूरी कोशिश करेंगे | </span></h3>
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<span style="color: magenta;">धन्यवाद | </span></div>
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<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-43402773889399090782017-11-08T12:26:00.000+05:302018-01-06T00:41:54.214+05:30फसलो के वानस्पतिक नाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: yellow; color: red; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: x-large;"><b><u>फसलो के वानस्पतिक नाम</u></b></span><br>
<ol style="text-align: left;">
<li><span style="color: lime;">आम (राष्ट्रीय फल) – मेँजीफेरा इण्डिका</span></li>
<li><span style="color: lime;"><span style="color: lime;">रोहिड़ा (रोहिड़ा का फूल राज॰ का राज्य पुष्प) – </span>टिकोमेला अण्डूलेटा</span></li>
<li><span style="color: lime;">अशोक – सरेका इण्डिका</span></li>
<li><span style="color: lime;">कमल (रा॰ पुष्प) – नीलम्बियम न्यूसीफेरा</span></li>
<li><span style="color: lime;">खेजड़ी (राजस्थान राज्य वृक्ष) – प्रोसोपिस स्पाइसीगेरा</span></li>
<li><span style="color: lime;">गेहूँ – ट्रीटिकम एसटिवम</span></li>
<li><span style="color: lime;">चावल – ऑरिजा सेटाइवा</span></li>
<li><span style="color: lime;">मक्का – जिया मेज</span></li>
<li><span style="color: lime;">गन्ना – सेकेरम आफिसिनेरम</span></li>
<li><span style="color: lime;">जौ – होर्डियम वल्गर</span></li>
<li><span style="color: lime;">जई – एवेना स्टर्लिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">राई – सीकेल सीरल</span></li>
<li><span style="color: lime;">बाजरा – पेनीसिटम अमेरिकोनम</span></li>
<li><span style="color: lime;">ज्वार – सोरगम वल्गर</span></li>
<li><span style="color: lime;">सिघाड़ा – ट्रापा नेटेन्स</span></li>
<li><span style="color: lime;">पालक – स्पाइनेसिया ओलेरेसिया</span></li>
<li><span style="color: lime;">मैथी – ट्राइगोनेला फेनूग्रेसम</span></li>
<li><span style="color: lime;">मूली – रेफेनस सेटाइवस</span></li>
<li><span style="color: lime;">गाजर – डॉकस केरोटा</span></li>
<li><span style="color: lime;">आलू – सोलेनम टयूबरोसम</span></li>
<li><span style="color: lime;">शलजम – ब्रेसिका रापा</span></li>
<li><span style="color: lime;">शकरकंद – आइपोमिया बटाटस</span></li>
<li><span style="color: lime;">चुकन्दर – बीटा वल्गरिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">टमाटर – लाइकोपर्सिकम एस्कूलेन्टम</span></li>
<li><span style="color: lime;">बैँगन – सोलेनम मेलेन्जीना</span></li>
<li><span style="color: lime;">मिर्च – केपिस्कम एनुअम</span></li>
<li><span style="color: lime;">कालीमिर्च – पाइपर नाइग्रम</span></li>
<li><span style="color: lime;">लालमिर्च – केप्सिकम एनुअम</span></li>
<li><span style="color: lime;">भिण्डी – एबलमोशस एस्कूलेन्टस</span></li>
<li><span style="color: lime;">लौकी – लूफा सिलिड्रिका</span></li>
<li><span style="color: lime;">टिँडा – सिर्टुलस वल्गरिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">मटर – पाइसम सेटाइवम</span></li>
<li><span style="color: lime;">पत्ता गोभी – ब्रेसिका ओलरेसिया वेराइटी केपीटेटा</span></li>
<li><span style="color: lime;">फूल गोभी – ब्रेसिका ओलरेसिया वेराइटी ब्रोट्रीटिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">प्याज – एलियम सीपा</span></li>
<li><span style="color: lime;">लहसून – एलियम सेटाइवम</span></li>
<li><span style="color: lime;">करेला – मामोर्डिका चेरेन्शिया</span></li>
<li><span style="color: lime;">हल्दी – कुर्कुमा लौँगा</span></li>
<li><span style="color: lime;">अदरक – जिन्जीबर ऑफिसिनेल</span></li>
<li><span style="color: lime;">हीँग – फेरूला ऐसाफोइटिडा</span></li>
<li><span style="color: lime;">पुदीना – मेन्था पिपरेटा</span></li>
<li><span style="color: lime;">लौँग – साइजियम एरोमेटिकम</span></li>
<li><span style="color: lime;">इलायची – इलिटेरिया कोर्डेमोमम</span></li>
<li><span style="color: lime;">धनिया – कोरिएन्ड्रम सेटाइवस</span></li>
<li><span style="color: lime;">सौँफ – फोनीकुल्म वल्गर</span></li>
<li><span style="color: lime;">जीरा – क्युमिनम सायमिनस</span></li>
<li><span style="color: lime;">केसर – क्रोकस सेटाइवस</span></li>
<li><span style="color: lime;">पपीता – केरीका पपाया</span></li>
<li><span style="color: lime;">अमरूद – साइडियम गुआवा</span></li>
<li><span style="color: lime;">जामुन – शायजियम क्यूमिनी</span></li>
<li><span style="color: lime;">संतरा – सिट्रस रेटिकुलेटा</span></li>
<li><span style="color: lime;">अनार – प्यूनिका ग्रेनेटम</span></li>
<li><span style="color: lime;">खरबूजा – कुकुमिस मेला</span></li>
<li><span style="color: lime;">तरबूजा – सिर्टुलस लेनेटस</span></li>
<li><span style="color: lime;">सेव – पायरस मेलस</span></li>
<li><span style="color: lime;">नाशपती – पाइरस पाइरिफोलिया</span></li>
<li><span style="color: lime;">केला – म्यूजा पेराडिसिऐका</span></li>
<li><span style="color: lime;">बेर – जिजिफस मॉरिसियाना</span></li>
<li><span style="color: lime;">शहतूत – मोरस एल्बा</span></li>
<li><span style="color: lime;">पीपल – पाइपर लौँगम</span></li>
<li><span style="color: lime;">मूंगफली – एरेकिस हाइपोजिया</span></li>
<li><span style="color: lime;">नारियल – कोकोस न्यूसीफेरा</span></li>
<li><span style="color: lime;">चाय – केमेलिया साइनेन्सिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">कॉफी – कॉफिया अरेबिका</span></li>
<li><span style="color: lime;">सनाय – केसिया आंगीटफोलिया</span></li>
<li><span style="color: lime;">इसबगोल – प्लेन्टोगो ओवेट</span></li>
<li><span style="color: lime;">सफेद मूसली – क्लोरोफायटम बोरिविलियान</span></li>
<li><span style="color: lime;">धतूरा – घटूरा स्पेशीज</span></li>
<li><span style="color: lime;">सिनकोना – सिनकोना ऑफिसिनेलिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">अश्वगंधा – विदानिया सोमनीफेरा</span></li>
<li><span style="color: lime;">ग्वारपाठा – ऐलोई बार्बेडेन्सिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">नीम – अजेडिरक्टा इंडिका</span></li>
<li><span style="color: lime;">कपास – गासिपियम स्पे</span></li>
<li><span style="color: lime;">जूट – कोरकोरस केपसूलेरिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">सागवान – टेक्टोना ग्रेन्डिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">साल – शोरिया रोबस्टा</span></li>
<li><span style="color: lime;">शीशम – डलबर्जिया सिसोँ</span></li>
<li><span style="color: lime;">बांस – बेम्बुसा स्पे</span></li>
<li><span style="color: lime;">रबर – हीविया ब्रेसिलियन्सिस</span></li>
<li><span style="color: lime;">रागी – इल्यूसिन कोराकाना</span></li>
<li><span style="color: lime;">अरहर – केजेनस केजन</span></li>
</ol>
<span style="color: #45818e;">दोस्तों कमेंट करके जरूर बताये कि आपको हमारी ये जानकारी कैसी लगी| </span><div>
साथ ही आपके जो भी कृषि से संबंधित प्रश्न है हमे कमेंट बॉक्स में लिख भेजिए हम आपके सभी प्रश्नो के उत्तर देने की पूरी कोशिश करेंगे | </div>
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<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-5123591316606345492017-09-30T14:09:00.001+05:302018-01-19T17:37:20.725+05:30पौधे जीवन का आधार है (The plants are base of our life)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; margin-bottom: 10px; text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEievup-ZYPju1UDFWR2rCZhJd_7iGcMKtijTQIwcVTEv3j6ojJRDAd7XpdwpQz4YY7OxK3z5Z7zJqgg7AM7C8B-8rV0XPRzTTNtCBEHUZG0-T8HKtoGY6gQebLiUGExfAl1F32GJTUxYxE/s1600/%255BUNSET%255D.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="550" data-original-width="1280" height="274" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEievup-ZYPju1UDFWR2rCZhJd_7iGcMKtijTQIwcVTEv3j6ojJRDAd7XpdwpQz4YY7OxK3z5Z7zJqgg7AM7C8B-8rV0XPRzTTNtCBEHUZG0-T8HKtoGY6gQebLiUGExfAl1F32GJTUxYxE/s640/%255BUNSET%255D.jpg" width="640" /></a></div>
<span style="color: orange;"> </span><span style="color: orange; font-size: 16.8px;"> प्रकृति समस्त जीवों के जीवन का मूल आधार है। प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन जीव जगत के लिए बेहद ही अनिवार्य है। प्रकृति पर ही पर्यावरण निर्भर करता है। गर्मी, सर्दी, वर्षा आदि सब प्रकृति के सन्तुलन पर निर्भर करते हैं। यदि प्रकृति समृद्ध एवं सन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी अच्छा होगा और सभी मौसम भी समयानुकूल सन्तुलित रहेंगे। यदि प्रकृति असन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी असन्तुलित होगा और अकाल, बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प आदि अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं कहर ढाने लगेंगी। प्राकृतिक आपदाओं से बचने और पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए पेड़ों का होना बहुत जरूरी है। पेड़ प्रकृति का आधार हैं। पेड़ों के बिना प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने पेड़ों को पूरा महत्व दिया। वेदों-पुराणों और शास्त्रों में भी पेड़ों के महत्व को समझाने के लिए विशेष जोर दिया गया है। पुराणों में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि एक पेड़ लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना कि दस गुणवान पुत्रों से यश की प्राप्ति होती है। इसलिए, जिस प्रकार हम अपने बच्चों को पैदा करने के बाद उनकी परवरिश बड़ी तन्मयता से करते हैं, उसी तन्मयता से हमें जीवन में एक पेड़ तो जरूर लगाना चाहिए और पेड़ लगाने के बाद उसकी सेवा व सुरक्षा करनी चाहिए। तभी हमें पेड़ लगाने का परम पुण्य हासिल होता है। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि जिसकी संतान नहीं है, उसके लिए वृक्ष ही संतान है। वृक्ष एक तरह से संतान की तरह ही मानव की उम्रभर सेवा करते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए।</span></div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
<span style="color: orange;"> </span><span style="color: lime;">यदि प्रकृति को ईश्वर का दूसरा रूप कहा जाए तो कदापि गलत नहीं होगा। पेड़ों पर प्रकृति निर्भर करती है। पेड़ लगाना प्रकृति का संरक्षण व संवर्धन है और प्रकृति का संरक्षण व संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है। एक पेड़ लगाने से असंख्य जीव-जन्तुओं के जीवन का उद्धार होता है और उसका अपार पुण्य सहजता से हासिल होता है। एक तरह से पेड़ लगाने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। भारतीय संस्कृति में भी वृक्षारोपण को अति पुण्यदायी माना गया है। शास्त्रों में लिखा गया है कि एक पेड़ लगाने से एक यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। पद्म पुराण में तो यहां तक लिखा है कि जलाशय (तालाब/बावड़ी) के निकट पीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सैंकड़ों यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। केवल इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति में एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान माना गया है।</span></div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
<span style="color: orange;"> पेड़ों के गुणों का समृद्ध भण्डार है। पेड़ों की जड़, तना, पत्ते, लकड़ी, फूल, फल, छाया, छाल आदि सब चीजें बेहद गुणकारी औषधि के साथ-साथ मानव जीवन का अभिन्न अंग हैं। पेड़ों द्वारा कार्बनडाइक्साईड को सोखने और बदले में ऑक्सीजन छोडऩे का गुण समस्त जीवों के जीवन के लिए वरदान है। पेड़ प्राकृतिक सन्तुलन के साथ-साथ आर्थिक योगदान में भी अग्रणीय भूमिका निभाते हैं। फर्नीचर उद्योग, कागज उद्योग, औषधि उद्योग, कपड़ा उद्योग आदि सब पेड़ों पर ही निर्भर करता है। मकान निर्माण से लेकर रोजगार निर्माण तक पेड़ बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं। पेड़ों पर पलने वाले अनेक जीव मानवीय जीवन को स्वस्थ व सुदृढ़ बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल में मानव आवास, खाद्य, सुरक्षा एवं औषधि आदि अनेक रूपों में पेड़ों पर ही निर्भर करता था। आदिकाल से आधुनिक काल तक पेड़ों की महत्ता में तनिक भी कमी नहीं आई है।</span><br />
<br />
<span style="color: orange;"> </span><span style="color: lime;"> वास्तुशास्त्र में औषधीय पेड़-पौधों को सुख, शांति, समृद्धि एवं संतति प्राप्ति का आधार स्तम्भ माना गया है। पेड़ लगाने से तमाम वास्तुदोष दूर हो जाते हैं और अनेक दिव्य पुण्यों और लाभों की प्राप्ति होती है। औषधीय पौधे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप में भी बेहद लाभदायक हैं। पुराणों में वृक्षों के पूजन और उनके महत्व का अपार वर्णन मिलता है। तुलसी, अनार, शमी, पीपल, केला, हरसिंगार, गुड़हल, श्वेत आक, कमल, मनीप्लांट, अशोक, आंवला, अश्वगंधा, नारियल, नीम, शतावर, बिल्व, बरगद, गुलर, बहेड़ा, नींबू आदि अनेक तरह के औषधीय पौधे जहां धार्मिक अनुष्ठानों में पुण्यदायी माने गए हैं, वहीं अनेक रोगों के निवारण में भी रामबाण सिद्ध होते हैं। ब्रह्माण्ड पुराण में धन की देवी लक्ष्मी को कदंबवनवासिनी के रूप में अलंकृत किया गया है। कदंब के पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को बालरूप में वटपत्रशायी के रूप में उद्बोधित किया जाता है। बृहदारण्यक उपनिषद में पुरूष को वृक्षस्वरूप माना गया है।</span></div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
<span style="color: orange;"> शास्त्रों के अनुसार एक पीपल, एक बरगद, दस इमली, कैथ, बेल, आंवले और आम के तीन-तीन पेड़ लगाने से मनुष्य को कभी भी नरक का गमन नहीं करना पड़ेगा, अर्थात उसे कभी नरक में नहीं जाना पड़ेगा। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि पीपल के तीन पेड़ लगाने से सद्गति मिलती है। इसके साथ ही लिखा है कि कदंब लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, अशोक लगाने से शोक का नाश होता है, जामून से धन की प्राप्ति होती है, बेल-बिल्वपत्र से लंबी आयु मिलती है, तेंदू से कुल की वृद्धि होती है, अनार से विवाह के योग बनते हैं, सुपारी से सिद्धि की प्राप्ति होती है, शमी से भयंकर रोगों से छुटकारा मिलता है, शीशम लगाने से लोक-परलोक दोनों सुधरते हैं और केशर वृक्ष लगाने से शत्रुओं का नाश होना बताया गया है।</span></div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16.8px; text-align: justify;">
<span style="color: orange;"> </span><span style="color: lime;"> कुल मिलाकर, पेड़ सृष्टि का आधार हैं। इनका पौराणिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। इनके द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन और कार्बनडाइक्साईड गैस के अवशोषण के गुण मानव जीवन के लिए अमोघ वरदान है। पेड़-पौधे धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ यह स्वास्थ्य एवं रोजगार के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाते हैं। प्राकृतिक सन्तुलन में पेड़ मुख्य भूमिका निभाते हैं। प्राकृतिक आपदाएं, प्रकृति के असन्तुलन से ही बढ़ी हैं। यदि इन पर अंकुश लगाना है तो पौधारोपण पर अधिक से अधिक जोर देना होगा। पौधारोपण करने के उपरांत उनकीं सुरक्षा करना बेहद जरूरी हो जाता है। प्रतिवर्ष लाखों पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन सुरक्षा एवं देखभाल के अभाव में वे जल्द ही दम तोड़ जाते हैं। इससे कोई लाभ नहीं होने वाला है। हमें यह निश्चय करना होगा कि जहां से एक पेड़ कटे, वहों कम से कम दो पेड़ लगाने चाहिए। यदि हम हर पर्व, जन्मदिन अथवा अन्य खुशी के पावन अवसरों पर पौधारोपण करने व पौधे उपहार स्वरूप देने की परंपरा शुरू करने का निश्चय करें तो नि:सन्देह अल्प समय में ही धरा वृक्षों से हरीभरी हो जायेगी और चहुंओर सुख, समृद्धि एवं शांति की अनहद बयार बहती नजर आयेगी। प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति तो मिलेगी ही, साथ ही अपार पुण्य एवं मानसिक शांति की भी प्राप्ति होगी।</span><br />
<span style="color: lime;"><br /></span>
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<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
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<div style="height: 0px; text-align: left;">
</div>
<h2 style="text-align: center;">
<u><span style="color: lime;">कोकोपिट को घर पर कैसे तैयार करें</span></u></h2>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">नमस्कार दोस्तों,</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;"> मैं हूँ मुकेश कुमार और आप पढ़ रहे हैं हमारे पौधे पर कृषि के बारे में।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">दोस्तों सबसे पहले तो आप सभी से क्षमा चाहता हूं कि में बहुत दिनों से एक्टिव नही था।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">लेकिन अब से मैं हमेशा आपके साथ बने रहने कि पूरी कोशिश करूंगा।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">तो दोस्तों शुरू करते हैं आज की पोस्ट के बारे में। दोस्तों आज मैं आपसे बात करने वाला हूँ मेरी एक अधूरी पोस्ट के बारे में जो मैने बीच मे छोड़ दी थी और आपको इंतज़ार करने के लिए कहा था । तो दोस्तो आज उस को ही पूरी करने की कोशिश करूंगा।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">दोस्तों आज में आपसे बात करने वाला हूँ कोकोपिट को हम अपने घर पर ही कैसे तैयार कर सकते हैं।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">तो दोस्तों अगर आपको कोकोपिट के बारे में नही पता है तो पहले आप मेरी पिछली पोस्ट <a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/coco-peat-solution-for-without-soil.html">कोको पीट : बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका </a>को एक बार जरूर देखें।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #e69138;">तो दोस्तो अब आप ये तो जान गए कि कोकोपिट क्या होती है। लेकिन आप ये सोच रहे होंगे कि अब कोकोपिट कहाँ से प्राप्त करे तो दोस्तो वैसे से तो कोकोपिट मार्केट में बहुत ही आसानी से मिल जाती है फिर भी कुछ जगह इसका मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है तो दोस्तो आज में आपको इसे घर पे बनाने की पूरी विधि बताने जा रहा हूँ।</span></div>
<h3 style="text-align: center;">
<span style="color: magenta;">आवश्यकताएं :-</span></h3>
<h4 style="text-align: center;">
<span style="color: #ffd966;">1. नारियल का छिलका (जट)<br />2. बर्तन ( टब या को छोटा बर्तन<br />3. कैंची<br />4. मिक्सी<br />5. छलनी<br />6. पानी</span></h4>
<h3 style="text-align: center;">
<span style="color: lime;">बनाने की विधि :-</span></h3>
<h4 style="text-align: center;">
<span style="color: magenta;">1. छिलके इकठ्ठा करना :-<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrxkwrax3MZvc66oYA66nzFeRdAOzF4_KpyJuQXiU8-OpktdKy3ORmHzWdILHqIXlkQ4l__rPaEVjYdrX0-D9Ib91N6r9T9oSWgCIrUfGu-tuRJDfeD0Tm4g6I8yt9pu-WdQnfUdrZ4SA/s1600/PicsArt_05-22-04.31.55.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrxkwrax3MZvc66oYA66nzFeRdAOzF4_KpyJuQXiU8-OpktdKy3ORmHzWdILHqIXlkQ4l__rPaEVjYdrX0-D9Ib91N6r9T9oSWgCIrUfGu-tuRJDfeD0Tm4g6I8yt9pu-WdQnfUdrZ4SA/s320/PicsArt_05-22-04.31.55.png" width="320" /></a></div>
</span></h4>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"> सबसे पहले हमें जरूरत होगी कुछ नारियल के छिलकों की जिनसे हम कोकोपिट बनाने वाले हैं। उसके लिए हम ऐसे छिलके इकठ्ठा करेंगे जो कि नरम हो लचीले हो लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि नारियल के छिलके नरम कैसे हो सकते तो दोस्तों नरियल के छिलकों के बीच का भाग बिलकुल नरम होता है और हमे उसी हो जरूरत होती है। अब आपको इन छिलकों को कैंची की सहायता से छोटे छोटे टुकड़ों में काटना है और ध्यान रहे कठोर भाग न आने पाए क्योंकि कठोर पार्ट को मिक्सी में डालने पर मिक्सी को खतरा रहता है।</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh901BQrK93A9J8piAKHk1qt7rcy-YlAA5aemryQ3eiMU1txpHDroqR6_AwN2kgVsEqgnOV5SXoJbzx1JJM9TrR-csHqVB-Ffru_DZv2kW6lLtijoprilZUWBv-cOr2yh1P1SgElvxZoew/s1600/PicsArt_05-22-04.33.39.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh901BQrK93A9J8piAKHk1qt7rcy-YlAA5aemryQ3eiMU1txpHDroqR6_AwN2kgVsEqgnOV5SXoJbzx1JJM9TrR-csHqVB-Ffru_DZv2kW6lLtijoprilZUWBv-cOr2yh1P1SgElvxZoew/s320/PicsArt_05-22-04.33.39.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<h4 style="text-align: center;">
<span style="color: magenta;">2. मिक्सी में पीसना :- <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj26vEJZsid4FkBFu325FUFfF8mZKMKAqXiKxiUvtODNJbEcnEuVu7FiXr3bbq3wEVCCdghFK9GbqOidh66D8D8xM7OODCGwoKenVWXfqpv0s0kFfMzAXVBvHSzVxPEZqVQG6LChkQx5_o/s1600/PicsArt_05-22-04.35.13.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj26vEJZsid4FkBFu325FUFfF8mZKMKAqXiKxiUvtODNJbEcnEuVu7FiXr3bbq3wEVCCdghFK9GbqOidh66D8D8xM7OODCGwoKenVWXfqpv0s0kFfMzAXVBvHSzVxPEZqVQG6LChkQx5_o/s320/PicsArt_05-22-04.35.13.jpg" width="320" /></a></div>
</span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX3oMRIP2NyEBDXUTlg3HBtMfuu3hvz4QoYlrsaLU6CKA5CcVeSliBBeFiXaheDnR8j9WP2eLmoeu5ZHqsSWidtjXGJmpDHkXloO0cjfhVKOUk1zRmOU6v5UbjAg5Ez3gOd2radGU_f7w/s1600/PicsArt_05-22-04.38.39.jpg" imageanchor="1" style="font-weight: normal; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX3oMRIP2NyEBDXUTlg3HBtMfuu3hvz4QoYlrsaLU6CKA5CcVeSliBBeFiXaheDnR8j9WP2eLmoeu5ZHqsSWidtjXGJmpDHkXloO0cjfhVKOUk1zRmOU6v5UbjAg5Ez3gOd2radGU_f7w/s320/PicsArt_05-22-04.38.39.jpg" width="320" /></a></h4>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">अब इन टुकड़ो को मिक्सी की सहायता से पीस लें। मैं आपको पहले ही बता दूं कि इन टुकड़ो का कभी भी पाऊडर नही बनेगा क्योंकि इनमें रेशे होते हैं जिनको पाऊडर बनाना मुमकिन नही होता है और हमे इसकी जरूरत भी नही है। अब इस पीसे हुए मिश्रण को छलनी की सहायता से छान कर या बिना छलनी के भी हमे सिर्फ रेशो को अलग करना है।</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqRaKnmc-zdXIibvoRj3_GlBKb-R9derlGDkMWQekQ7ExSM9b_k-qCYbvvBsuySWQRzqY53GJZm493B8FJ53CjL-nRynynxLD7wYS63LkrHm7ojSmh6cUJ0YISjtnoMWR6p5INIuB4OvI/s1600/PicsArt_05-22-04.39.56.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqRaKnmc-zdXIibvoRj3_GlBKb-R9derlGDkMWQekQ7ExSM9b_k-qCYbvvBsuySWQRzqY53GJZm493B8FJ53CjL-nRynynxLD7wYS63LkrHm7ojSmh6cUJ0YISjtnoMWR6p5INIuB4OvI/s320/PicsArt_05-22-04.39.56.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<h4 style="text-align: center;">
<span style="color: magenta;">3. कोकोपिट तैयार करना :- <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJgsADSfY2qsDHuHX1JARFX5khcf-x_Hg1ue5RFhkEFEwIU8kgO2PZj3Q8bDNM1VAQz90Jxr-97bcD7C96Z6_ydXsKXBAOsphXOk2lHxsu2P35tu72-3z1owd2XxJea7fhibeRA7yN_iI/s1600/PicsArt_05-22-04.41.03.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJgsADSfY2qsDHuHX1JARFX5khcf-x_Hg1ue5RFhkEFEwIU8kgO2PZj3Q8bDNM1VAQz90Jxr-97bcD7C96Z6_ydXsKXBAOsphXOk2lHxsu2P35tu72-3z1owd2XxJea7fhibeRA7yN_iI/s320/PicsArt_05-22-04.41.03.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0HnLoP38XESD0N2ZYT8P2_W4h1W0VITkiCTiDkGJGvyKv_-LuVMKZVHKNMc43c8QSvjFrlCLlAff3RSPDs9pYapLgbo0hEASUtTMfR46AOIDz_KesTAAsN4RaHzaOUpCaQ80wW2dgtyA/s1600/PicsArt_05-22-04.42.08.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0HnLoP38XESD0N2ZYT8P2_W4h1W0VITkiCTiDkGJGvyKv_-LuVMKZVHKNMc43c8QSvjFrlCLlAff3RSPDs9pYapLgbo0hEASUtTMfR46AOIDz_KesTAAsN4RaHzaOUpCaQ80wW2dgtyA/s320/PicsArt_05-22-04.42.08.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
</span></h4>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">अब बचा हुआ भाग ही कोकोपिट कहलाता है। जिसको थोड़ा सा पानी डाल कर निचोड़ लिया जाता है। अब इसमें से पानी को पूरी तरह निकाल दिया जाता है और कोकोपिट को अच्छी तरह दबा कर संपीडित कर लिया जाता है। संपीडित करते समय अगर आप इसको कोई शेप देना चाहते हैं तो वो भी दे सकते हैं। अब आपका कोकोपिट पूरी तरह तैयार है इसको आप सुरक्षित स्थान ( नमी रहित ) पर रखे और जब भी आवश्यकता हो प्रयोग करें। </span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjewUTgSgBKZQtXK86BOgZ6Fs3nC_ABn3ox98ju3Phh9-DtRmZQ_TFnmUaJlvd4qjDjzDQSeKuqzf1K7ZmXit-Iiwl32WlT_RgJnDCBvfuCElD04AQtBaLoIBl1Oe30RgymZmvMde7Ijg0/s1600/PicsArt_05-22-04.43.41.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjewUTgSgBKZQtXK86BOgZ6Fs3nC_ABn3ox98ju3Phh9-DtRmZQ_TFnmUaJlvd4qjDjzDQSeKuqzf1K7ZmXit-Iiwl32WlT_RgJnDCBvfuCElD04AQtBaLoIBl1Oe30RgymZmvMde7Ijg0/s320/PicsArt_05-22-04.43.41.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">एक चीज बताना भूल गया कि जो कचरे के रूप में रेशे निकले थे उनका क्या करना है तो दोस्तों वो कचरा नही है उसका उपयोग हम कई प्रकार से कर सकते हैं जैसे कि गमले के नीचे के छेद में लगा कर जिससे मिट्टी कटाव न हो और जल का निस्तारण भी होता रहे।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">दोस्तों अगली पोस्ट में आपको बताऊंगा कि कोकोपिट का उपयोग कैसे किया जाता है।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">दोस्तो आपको हमारी ये पोस्ट केसी लगी जरूर बताएं जिससे हमें हमारी कमियों के पता चल सके।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">और साथ ही अपने ईमेल के साथ हमारी वेबसाइट की सदस्यता ( subscription ) जरूर लें जिससे आपको हमारी नई पोस्ट की जानकारी सीधे आपके मेल बॉक्स में मिल जाये।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;">धन्यवाद।</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
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<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-8571628050826697972017-04-02T13:33:00.000+05:302018-01-19T17:32:29.057+05:30पपीते की खेती ( Farming of papaya )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="blogaway-section">
दोस्तों आपने हमारी पिछली पोस्ट में पढ़ा जैविक खेती के बारे में पढ़ा और कुछ पाठकों ने सुझाव भी दिए मुझे भुत अच्छा लगा इसी कड़ी में आज में आपके सामने लाया हूँ पपीते की खेती के बारे में तो पढ़िए पपीते के बारे में और पोस्ट अच्छी लगे तो कमेंट करके बताएं और अपने दोस्तों को भी बताये इसके बारे मे।<br>
<br>
<b><span style="color: #79e67f;">●परिचय</span></b><br>
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पपीते का फल थोड़ा लम्बा व गोलाकार होता है तथा गूदा पीले रंग का होता है। गूदे के बीच में काले रंग के बीज होते हैं। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0TGmzT-I3Voy3W72qUIB7AObWLS5lH6JEC0AmJmiu-7LkJ8daDZcPlcBeb4VObWIRPOboBsRKK9QVXNddLWioI4YRXOfkH3AmiQYxcUBShi-dlmGMLv0B6Tx41B46qPO7ff921qkTjEI/s1600/PicsArt_07-06-10.01.15.jpg"></a><br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKazfXR7cuB2AWSGCqtc7hRjB0honpISQUj-AWcs8Qd_R1runcO3byaiQ4ySjz4PxNa6YUobEK5km50d2lUjv_VJ4rQz2_vDWd-mw58RoDsU2wzk5ICPDOEyfW5qGtHT78Ek2iUw65QhY/s1600/PicsArt_07-06-10.01.15.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="267" data-original-width="550" height="310" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKazfXR7cuB2AWSGCqtc7hRjB0honpISQUj-AWcs8Qd_R1runcO3byaiQ4ySjz4PxNa6YUobEK5km50d2lUjv_VJ4rQz2_vDWd-mw58RoDsU2wzk5ICPDOEyfW5qGtHT78Ek2iUw65QhY/s640/PicsArt_07-06-10.01.15.jpg" width="640"></a></div>
<br>
<br>
पेड़ के ऊपर के हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल आते हैं ताकि यह पत्तों का घेरा कोमल फल की सुरक्षा कर सके। कच्चा पपीता हरे रंग का और पकने के बाद हरे पीले रंग का होता है। आजकल नयी जातियों में बिना बीज के पपीते की किस्में ईजाद की गई हैं। एक पपीते का वजन 300, 400 ग्राम से लेकर 1 किलो ग्राम तक हो सकता है।<br>
<br>
पपीते के पेड़ नर और मादा के रुप में अलग-अलग होते हैं लेकिन कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं। हवाईयन और मेक्सिकन पपीते बहुत प्रसिद्ध हैं। भारतीय पपीते भी अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। अलग-अलग किस्मों के अनुसार इनके स्वाद में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है।<br>
<br>
</div></div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2016/07/farming-of-papaya.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com1Parivahan Nagar, Jaipur, India26.9262262 75.7470623tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-31255280784541490402017-03-21T11:10:00.001+05:302017-03-21T11:10:47.777+05:30ग्वारपाठा (Alovera)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<h2>
<span style="color: red; font-size: x-large;"><b style="background-color: #d9ead3;"><u>ग्वारपाठा</u></b></span></h2>
<span style="color: #93c47d; font-size: medium;"><b>दोस्तों कई दिनो से कोई
नई पोस्ट नहीं लिख पाया उसके लिये आपसे माफी चाहता हुं । मेरी पिछली पोस्ट पर आपका बहुत प्यार मिला उसके लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आज मैं आपको बताने वाला हूं ग्वारपाठा के बारे में तो दोस्तों आइये जानते हैं ग्वारपाठा के बारे में :- </b></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAj0beOqkuL_Qg843ozvSdC8mOEwjUCf8IXmQ3XzefzGUPDVxB8Xr0MPMOWrQzAW4XilZf8-GBROL6TMg5yt63fB3BKXX7mU_lOCEyvgIXA9J5yiAPvXMYIbcqhSLGRw4IFYey4_jcu1E/s1600/aloe-vera-main.254161536_std.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAj0beOqkuL_Qg843ozvSdC8mOEwjUCf8IXmQ3XzefzGUPDVxB8Xr0MPMOWrQzAW4XilZf8-GBROL6TMg5yt63fB3BKXX7mU_lOCEyvgIXA9J5yiAPvXMYIbcqhSLGRw4IFYey4_jcu1E/s320/aloe-vera-main.254161536_std.png" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: #93c47d; font-size: medium;"><b><br /></b></span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<br />
<ul>
<li><b style="background-color: magenta; text-align: left;"><span style="color: lime; font-size: large;">औषधीय पौधा एलोवेरा फायदे की खेती :-</span></b></li>
</ul>
</div>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">घृतकुमारी जिसे ग्वारपाठा एवं एलोवेरा के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन समय से ही चिकित्सा जगत में बीमारियों को उपचारित करने के लिए इसका प्रयोग किया जा रहा है। घृतकुमारी के गुणों से हम सभी भली-भांति परिचित हैं। हम सभी ने सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से इसका उपयोग किसी न किसी रुप में किया है। घृतकुमारी में अनेकों बीमारियों को उपचारित करने वाले गुण मौजूद होते हैं। इसीलिए ही आयुर्वेदिक उद्योग में घृतकुमारी की मांग बढ़ती जा रही है। एक बार लगाने पर तीन से पाँच साल तक उपज ली जा सकती है। और इसे खेत की मेड पर भी लगा सकते है जिसके कई फैदे है एक आप के खेत में कोई आवारा पशु नही आएगा | आपके खेत की मेडबंधी भी हो जाएगी एलोवेरा को कोई जानवर भी नही खाता है आप को अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी |</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;"><br /></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">मृदा एवं जलवायु:-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">प्राकृतिक रूप से इसके पौधे को अनउपजाऊ भूमि में उगते देखा गया है। इसे किसी भी भूमि में उगाया जा सकता है। परन्तु बलुई दोमट मिट्टी में इसका अधिक उत्पादन होता है।उन्नतशील प्रजातियाँ: केन्द्रीय औषधीय सगंध पौधा संस्थान के द्वारा सिम-सीतल, एल- 1,2,5 और 49 एवं को खेतों में परीक्षण के उपरान्त इन जातियों से अधिक मात्रा में जैल की प्राप्ति हुई है। इनका प्रयोग खेती (व्यवसायिक) के लिए किया जा सकता है।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGGZ26mkooTDf3R_5RLw6GY9FbbyWxZiAUIiDBSkTCWw_plukZqZVY1FirnMvEkd0M6y4Ntx_uUk4riQgLmw4dINZXIDQSKPq7e1vMdmIiniXRve2SLguXVYySDM07MFIREaP5xn5KjG8/s1600/aloe-vera-plant.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="307" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGGZ26mkooTDf3R_5RLw6GY9FbbyWxZiAUIiDBSkTCWw_plukZqZVY1FirnMvEkd0M6y4Ntx_uUk4riQgLmw4dINZXIDQSKPq7e1vMdmIiniXRve2SLguXVYySDM07MFIREaP5xn5KjG8/s320/aloe-vera-plant.jpg" width="320" /></a></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">पौध रोपाई:-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">भूमि की एक-दो जुताई के बाद खेत को पाटा लगाकर समतल बना लें। इसके उपरान्त ऊँची उठी हुई क्यारियों में 50&50 सेमी की दूरी पर पौधों को रोपित करें। पौधों की रोपाई के लिए मुख्य पौधों के बगल से निकलने वाले छोट छोटे पौधे जिसमें चार-पाँच पत्तियाँ हों, का प्रयोग करें। लाइन से लाइन की दूरी 50 एवं पौधे से पौधे की दूरी 50 रखने पर 10,000 पौधों की आवश्यकता रोपाई के लिए होगी। सिचिंत दशाओं में इसकी रोपाई फरवरी माह में उतम होती है वैसे आप कभी भी इसे लगा सकते हो |</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;"><br /></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b><span style="background-color: magenta; color: lime; font-size: large;">खाद एवं उर्वरक:-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">10-12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद पौधे के अच्छे विकास के लिए आवश्यक है। 120 किग्रा. यूरिया, 150 किग्रा. फास्फोरस एवं 33 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। नाइट्रोजन को तीन बार में एवं फास्फोरस व पोटाश को भूमि की तैयारी के समय ही दें। नाइट्रोजन का पौधों पर छिड़काव करना अच्छा रहता है।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;"><br /></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">सिंचाई:-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">पौधों की रोपाई के बाद खेत में पानी दें। (घृतकुमारी) की खेती में ड्रिप एवं स्ंिप्रकलर सिंचाई अच्छी रहती है। प्रयोग द्वारा पता चला है कि समय से सिंचाई करने पर पत्तियों में जैल का उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार वर्ष भर में 3-4 सिंचाईओं की आवश्यकता होती है।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;"><br /></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">रोग एवं कीट नियन्त्रण:-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">समय-समय पर खेत से खरपतवारों को निकालते रहें। खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा बढऩे पर खरपतवारनाशी का भी प्रयोग कर सकते हैं। ऊँची उठी हुई क्यारियों की समय समय पर मिट्टी चढ़ाते रहें। जिससे पौधों की जड़ों के आस-पास पानी के रूकने की सम्भावना कम होती है एवं साथ ही पौधों को गिरने से भी बचाया जा सकता है। पौधों पर रोगों का प्रकोप कम ही होता है। कभी-कभी पत्तियों एवं तनों के सडऩे एवं धब्बों वाली बीमारियों के प्रकोप को देखा गया है। जो कि फफूंदी जनित बीमारी है। इसकी नियंत्रण के लिए मैंकोजेब, रिडोमिल, डाइथेन एम-45 का प्रयोग 2.0-2.5 ग्राम/ली. पानी में डालकर छिड़काव करने से किया जा सकता है। ग्वारपाठा के पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, परंतु खेत में हल्की नमी बनी रहे व दरारें नहीं पड़ना चाहिए। इससे पत्तों का लुबाब सूख कर सिकुड़ जाते हैं। बरसात के मौसम में संभालना ज्यादा जरूरी होता है। खेत में पानी भर जाए तो निकालने का तत्काल प्रबंध करें। लगातार पानी भरा रहने पर इनके तने (पत्ते) और जड़ के मिलान स्थल पर काला चिकना पदार्थ जमकर गलना शुरू हो जाता है।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #f1c232;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7WfxYcE2d0twRbFzedC3utYe1hyphenhyphenV6ummdksC_Ue4F4JURqdmr-fkJz3mGsEVLsZlbq0kq4F2EC83JgRlTxfRfJgj8DhcihyphenhyphenJGVnV0kx1WK2DZ62zHuRAp5nEjyfUfB8g91A8oDHowvV8/s1600/alovera.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="155" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7WfxYcE2d0twRbFzedC3utYe1hyphenhyphenV6ummdksC_Ue4F4JURqdmr-fkJz3mGsEVLsZlbq0kq4F2EC83JgRlTxfRfJgj8DhcihyphenhyphenJGVnV0kx1WK2DZ62zHuRAp5nEjyfUfB8g91A8oDHowvV8/s320/alovera.jpg" width="320" /></a></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">फसल की कटाई एवं उपज :-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">रोपाई के 10-15 महिनों में पत्तियाँ पूर्ण विकसित एवं कटाई के योग्य हो जाती हैं। पौधे की ऊपरी एवं नई पत्तियों की कटाई नहीं करें। निचली एवं पुरानी 3-4 पत्तियों को पहले काटना/तोडें। इसके बाद लगभग 45 दिन बाद पुन: 3-4 निचली पुरानी पत्तियों की कटाई/तुड़ाई करें। इस प्रकार यह प्रक्रिया तीन-चार वर्ष तक दोहराई जा सकती है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग प्रतिवर्ष 50-60 टन ताजी पत्तियों की प्राप्ति होती है। दूसरे एवं तीसरे वर्ष 15-20 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। यदि ग्वारपाठे के एक स्वस्थ पौधे से 400 ग्राम (मिली) गूदा भी निकलती है</span><span style="color: #bf9000;">।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;"><br /></span></div>
<div dir="ltr">
</div>
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: center;"><b style="background-color: magenta;"><span style="color: lime; font-size: large;">कटाई उपरान्त प्रबंन्धन एवं प्रसंस्करण :-</span></b></li>
</ul>
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">विकसित पौधों से निकाली गई, पत्तियों को सफाई करने के बाद स्वच्छ पानी से अच्छी तरह से धो लिया जाता है, जिससे मिट्टी निकल जाती है। इन पत्तियों के निचले सिरे पर अनुप्रस्थ काट लगा कर कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं, जिससे पीले रंग का गाढ़ा रस निकलता है। इस गाढ़े रस को किसी पात्र में संग्रह करके वाष्पीकरण की विधि से उबाल कर, घन रस क्रिया द्वारा सुखा लेते है। इस सूखे हुए द्रव्य को मुसब्बर अथवा सकोत्रा, जंजीवर, केप, बारवेडोज एलोज एवं अदनी आदि अन्य नामों से से विश्व बाजार में जाना जाता है। (घृतकुमारी) की जातिभेद एवं रस क्रिया में वाष्पीकरण की प्रक्रिया के अन्तर से मुसब्बर के रंग, रूप, तथा गुणों में भिन्नता पाई जाती है।</span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="background-color: #93c47d; color: #cc0000; font-size: x-large;">Note :- </span></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<span style="color: #bf9000;">दोस्तो अगर आपको हमारी ये पोस्ट पसन्द आई हो तो प्लीज इसे लाइक करे, कमेंट करें और साथ ही हमारी पोस्ट को शेयर भी करें ।
</span></div>
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<span style="color: #bf9000;">आप हमे फेसबुक पर भी देख सकते हैं उसके लिये </span></div>
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<div class="blogaway-section">
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;">दोस्तों आप सभी का इतना प्यार और साथ मिल रहा है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आप सब मेरी सारी पोस्ट पढ़ते हैं इस बात से मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है।और मै ये ख़ुशी के पलों के साथ लाया हूँ आपके सामने एक और पोस्ट वैसे तो ये पोस्ट मुझे मेरे एक दोस्त ने भेजी है लेकिन इसमें बहुत ज्यादा जानकारियां है इसलिए इसे मै आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ जिससे आप सभी का ज्ञान बढ़े।</span></span><br>
<br>
<span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;">किसान भाइयों आज मैं आपको सरसों की खेती के बारें में विस्तार से जानकारी दूंगा इस को पढ़कर आप अपने दिमाग के निम्न प्रश्नों को शांत कर पाएंगे –</span></span><br>
<br>
<span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"> </span></span><b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सरसों</span></span></span></span></b><br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">की फसल की भूमि तैयारी एवं सिंचाई कैसे करें?</span></span></span></span></b><br>
<br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सरसों</span></span></span></span></b><br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">में कीटों के नियंत्रण कैसे करें?</span></span></span></span></b><br>
<br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सरसों</span></span></span></span></b><br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">में लगने वाले रोगों के बारे में</span></span></span></span></b><br>
<br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सरसों</span></span></span></span></b><br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">की उन्नत किस्मे कौन कौनसी है?</span></span></span></span></b><br>
<br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सरसों में</span></span></span></span></b><br>
<b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;">सिंचाई बुआई, निराई, गुड़ाई कब, क्यों एवं कैसे की जाती</span></span></span></span></b><b><span style="color: #19b73d;"><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;"><b> </b></span></span></span></span></b><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;"><b>है</b></span></span></span><span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><span style="color: #158e2d;"><b><b><b><b><b>?</b></b></b></b></b></span></span></span><br>
<br>
<span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><b><span style="color: #148e2d;">सरसों</span></b></span></span><br>
<span style="color: #a77aa8;"><span style="color: #c94ccc;"><b><span style="color: #148e2d;">की फसल में वार्षिक उत्पादन कितना होता है?</span></b></span></span><br>
<br>
</div></div></div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2016/11/musterd.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-90775016266816774952016-10-20T21:34:00.001+05:302017-04-02T13:32:22.585+05:30पालक (palak)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="blogaway-section">
<span style="color: #4cce13;"><b>पालक की खेती</b></span><br>
<img src="https://lh3.googleusercontent.com/-wC3a6WsbdKM/WAjrEQ2jOMI/AAAAAAAAAkE/3zNMwJgxzTM/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg"><br>
<span style="color: #9118b0;"><b>जलवायु एवं भूमि:-</b></span><br>
पालक की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, पानी का निकास अच्छा होना अति आवश्यक हैI जिस भूमि का पी.एच 6 से 7 होता है, वह भूमि अच्छी मानी जाती हैI<br>
<br><span style="color: #9117b0;"><b>पालक की उन्नतशील प्रजातियां :-</b></span><br>
पत्ती और बीज के आधार पर दो-दो प्रकार की पालक की प्रजातियां पाई जाती है, बीज के आधार पर इसमे रिंकिल सीड वाली तथा गोल सीड वाली होती हैI पत्ती के आधार पर इसमे चिकनी पत्ती तथा खबोई रिंकिल पत्ती वाली होती है, इनके आधार पर विर्जीनिया सबोई एवं अगेती चिकनी पत्ती वाली प्रजातियां पाई जाती है जैसे की पालक आल ग्रीन, पूसा ज्योति, हरित, आरती तथा जाबनेर ग्रीन आदि हैI<br>
<br><span style="color: #fc43ff;"><b>यह भी पढ़ें:-</b></span><br>
<br><a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/grafting.html">विनियर ग्राफ्टिंग ( Grafting )</a><br>
<br><a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/strawberry-magical-plant.html">स्ट्राबेरी: एक अदभुत पादप (Strawberry: a magical p...</a><br>
<br><a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/coco-peat-solution-for-without-soil.html">कोको पीट : बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका (Coco...</a><br>
<br>
</div></div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2016/10/palak.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
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<div class="blogaway-section">
दोस्तों बहुत दिन हो गए कुछ लिख नही पाया लेकिन फिर भी आप ने मेरा साथ नही छोड़ा उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।<br>
आज मै आपके लिए एक ऐसी पोस्ट लाया हूँ जिसकी जरुरत आप सभी महसूस करते होंगे तो दोस्तों पढ़िए हमारी ये पोस्ट।<br>
<br>
<span style="color: #356521;">पोषक तत्वों की कमी के लक्षण</span><br>
<br>
<b><span style="color: #1311e4;">नाइट्रोजन</span></b><br>
<br>
1. पौधों की बढवार रूक जाती है तथा तना छोट एवं पतला हो जाता है।<br>
2. पत्तियां नोक की तरफ से पीली पड़ने लगती है। यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर पड़ता है, नई पत्तियाँ बाद में पीली पड़ती है।<br>
3. पौधों में टिलरिंग कम होती है।<br>
4. फूल कम या बिल्कुल नही लगते है।<br>
5. फूल और फल गिरना प्रारम्भ कर देते है।<br>
6. दाने कम बनते है।<br>
7. आलू का विकास घट जाता है।<br>
<br>
दोस्तों आज में आपके सामने लाया हूँ हमारे पौधे की सभी पोस्ट तो देखिये पढिये और अमल कीजिये इन पर। जो समझ में ना आये वो पूछिये।<br>
<br>
<span style="color: #22a0a9;">यह भी पढ़ें:-</span><br>
<br>
<a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/grafting.html">विनियर ग्राफ्टिंग ( Grafting )</a><br>
<br>
<a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/strawberry-magical-plant.html">स्ट्राबेरी: एक अदभुत पादप (Strawberry: a magical plant)</a><br>
<br>
<a href="http://www.hamarepodhe.com/2016/05/coco-peat-solution-for-without-soil.html">कोको पीट : बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका</a><br>
<br>
<br>
</div></div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2016/08/sign-for-mineral-loss.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-74466369092344994012016-05-27T00:40:00.001+05:302017-04-02T13:34:10.653+05:30जैविक खेती के लिए खाद निर्माण (Fertilizer making for Organic Farming)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="blogaway-section">
दोस्तों आपने पिछली पोस्ट में पढ़ा की <a href="http://www.hamarepodhe.cf/2016/05/what-is-organic-farming.html?m=1"><span style="color: #741dba;">जैविक खेती क्या होती है?</span></a> आज में आपको बताऊंगा कि जैविक खेती में काम में आने वाली खाद कैसे बनाते हैं तो दोस्तों जानिए और जैविक खेती करिये।<br>
<br>दोस्तों जैसा कि आपको पता ही है कि आज के समय में जैविक खेती एक बहुत ही आवश्यक चीज़ हो गईं है क्योकि खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा। इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी। प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा।<br>
<br><b><span style="color: black;"><span style="color: #1fba5e;">जैविक खाद बनाने की विधि:-</span></span></b><br>
<br>अब हम खेती में इन सूक्ष्म जीवाणुओं का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वों की पूर्ति हेतु मदद लेंगे। खेतों में रसायनों से ये सूक्ष्म जीव क्षतिग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल में हमें इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे फसलों को पोषण तत्व उपलब्ध हो सकें।<br>
दलहनी फसलों में प्रति एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोबियम कल्चर डालना पड़ेगा। एक दलीय फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर इनती ही मात्रा में डालें। साथ ही भूमि में जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रति एकड़ डालना होगा।<br>
<br>
</div></div><a href="https://hamarepodhe.blogspot.com/2016/05/fertilizer-making-for-organic-farming.html#more">और जानिएं »</a><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-73562628782797713492016-05-22T16:21:00.001+05:302017-04-02T13:45:03.627+05:30जैविक खेती क्या है? ( What is Organic Farming)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="blogaway-section">
दोस्तों बहुत दिनों से कोशिश कर रहा था कि आपको जैविक खेती के बारे में कुछ बताऊँ लेकिन परिस्थितिवस कर नही पा रहा था। आज विकिपीडिया की मदद से आपको जैविक खेती के बारे में कोशिश करूंगा। अगर आपको अच्छी लगे तो कमेन्ट बॉक्स में जरुर लिखें।<br>
<br><a href="http://www.facebook.com/pentagan.plant.company"><span style="color: #d430dc;">हमारे पौधे को फेसबुक पर लाइक करें </span></a><br>
<br>जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के बिना प्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र,हरी खाद,कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफ़ी बढ़ा है।<br>
<br><b><i><span style="color: #3a9838;">परिचय</span></i></b><b><i> </i></b><br>
संपूर्ण विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे।<br>
<br>भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सीमान्त व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते है। भारत सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है।<br>
<br>
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<b>विनियर भेंट कलम</b><br>
विनियर भेंट कलम द्वारा प्रसारण की यह विधि व्यावसायिक स्तर पर प्रसारण के लिये उपयुक्त है। जिस तने पर कलम लगानी हो उसे एक सप्ताह पहले ही पत्ती रहित कर देते है। इससे सुप्त कलियॉ पत्तियो के आधार पर फूल जाती है। विनियर भेंट कलम के लिये मानक<br>
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<div class="blogaway-section">
<span style="color: #d32fa8;">दोस्तो बहुत दिनों से कोशिश कर रहा था कि आपको कोई नई जानकारी दूं लेकिन कुछ दिनों से मैं कुछ भी नहीं लिख नही पा रहा था| तो दोस्तों आज मै आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताऊंगा जिसके बारे में हर कोई जानना चाहता है और इसकी खेती भी करना चाहता है। आपने हमारी पिछली पोस्ट में जैविक खाद बनाने के बारे में जाना आज मै आपको मसरूम के बारे में बताने वाला हूँ। </span><br>
<img src="https://lh3.googleusercontent.com/-8cLe935_vjw/WEAT01-sM8I/AAAAAAAAAo4/hLZfhDZB2dY/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg"><br>
<span style="color: #3baf2e;"><b><span style="color: #d32fa8;">परिचय :- </span></b></span><br>
<br><span style="color: #d32fa8;">दोस्तों कई हजारों वर्षों से विश्वभर में मशरूमों की उपयोगिता भोजन और औषध दोनों ही रूपों में रही है। ये पोषण का भरपूर स्रोत हैं और स्वास्थ्य खाद्यों का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं। मशरूमों में वसा की मात्रा बिल्कुल कम होती हैं, विशेषकर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में, और इस वसायुक्त भाग में मुख्यतया लिनोलिक अम्ल जैसे असंतप्तिकृत वसायुक्त अम्ल होते हैं, ये स्वस्थ हृदय और हृदय संबंधी प्रक्रिया के लिए आदर्श भोजन हो सकता है। पहले, मशरूम का सेवन विश्व के विशिष्ट प्रदेशों और क्षेत्रों तक ही सीमित था पर वैश्वीकरण के कारण विभिन्न संस्कृतियों के बीच संप्रेषण और बढ़ते हुए उपभोक्तावाद ने सभी क्षेत्रों में मशरूमों की पहुंच को सुनिश्चित किया है। मशरूम तेजी से विभिन्न पाक पुस्तक और रोजमर्रा के उपयोग में अपना स्थान बना रहे हैं। एक आम आदमी की रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। उपभोग की चालू प्रवृत्ति मशरूम निर्यात के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों को दर्शाती है।</span><br>
<br><span style="color: #d32fa8;">भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्रजातियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्परागत तरीके से की जाती है। सामान्यतया, अपाश्चुरीकृत कूडा खाद का प्रयोग किया जाता है, इसलिए उपज बहुत कम होती है। तथापि पिछले कुछ वर्षों में बेहतर कृषि-विज्ञान पदधातियों की शुरूआत के परिणामस्वरूप मशरूमों की उपज में वृद्धि हुई है। आम वाईट बटन मशरूम की खेती के लिए तकनीकी कौशल की आवश्यकता है। अन्य कारकों के अलावा, इस प्रणाली के लिए नमी चाहिए, दो अलग तापमान चाहिए अर्थात पैदा करने के लिए अथवा प्ररोहण वृद्धि के लिए (स्पॉन रन) 22°-28℃, प्रजनन अवस्था के लिए (फल निर्माण) : 15°-18℃ ; नमी: 85-95 प्रतिशत और पर्याप्त संवातन सब्स्ट्रेट के दौरान मिलना चाहिए जो विसंक्रमित हैं और अत्यंत रोगाणुरहित परिस्थिति के तहत उगाए न जाने पर आसानी से संदूषित हो सकते हैं। अत: 100 डिग्री से. पर वाष्पन (पास्तुरीकरण) अधिक स्वीकार्य है।</span><br>
<br><span style="color: #d32fa8;">प्लयूरोटस, ऑएस्टर मशरूम का वैज्ञानिक नाम है। भारत के कई भागों में, यह ढींगरी के नाम से जाना जाता है। इस मशरूम की कई प्रजातिया है उदाहणार्थ :- प्लयूरोटस ऑस्टरीयटस, पी सजोर-काजू, पी. फ्लोरिडा, पी. सैपीडस, पी. फ्लैबेलैटस, पी एरीनजी तथा कई अन्य भोज्य प्रजातियां।</span><br>
<br><span style="color: #d32fa8;">मशरूम उगाना एक ऐसा व्यवसाय है, जिसके लिए अध्यवसाय धैर्य और बुद्धिसंगत देख-रेख जरूरी है और ऐसा कौशल चाहिए जिसे केवल बुद्धिसंगत अनुभव द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।</span><br>
<span style="color: #d32fa8;">प्लयूरोटस मशरूमों की प्ररोहण वृद्धि (पैदा करने का दौर) और प्रजननचरण के लिए 20°-30℃ का तापमान होना चाहिए। मध्य समुद्र स्तर से 1100-1500 मीटर की ऊचांई पर उच्च तुंगता पर इसकी खेती करने का उपयुक्त समय मार्च से अक्तूबर है, मध्य समुद्र स्तर से 600-1100 मीटर की ऊचांई पर मध्य तुंगता पर फरवरी से मई और सितंबर से नवंबर है और समुद्र स्तर से 600 मीटर नीचे की निम्न तुंगता पर अक्तूबर से मार्च है।</span><br>
<br>
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<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-yope1CSqvvg/VzNsDqtTe3I/AAAAAAAAAOg/y1IgY9n8IuE/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-yope1CSqvvg/VzNsDqtTe3I/AAAAAAAAAOg/y1IgY9n8IuE/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" style="cursor: hand; cursor: pointer; display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center;"></a><br>
<b>वैज्ञानिक वर्गीकरण</b><br>
<br>
<b>जगत:- </b>पादप<br>
<b>विभाग:- </b>मेंगोलिओफाईटा<br>
<b>वर्ग:- </b>मेंगोलिओप्सीडा<br>
<b>गण:- </b>रोजेल्स<br>
<b>कुल:- </b>रोजेसी<br>
<b>प्रजाति:- </b>फ़्रागार्या<br>
<b>जाति:- </b>अन्नानास्सा<br>
<br>
<b>द्विपद नाम</b><br>
<i>फ़्रागार्या अन्नानास्सा </i><br>
<br>
<b>परिचय:- <br>
दुशैन स्ट्रॉबेरी</b> फ़्रागार्या जाति का एक पादप होता है, जिसके फल के लिये इसकी विश्वव्यापी खेती की जाती है। इसके फल को भी इसी नाम से जाना जाता है। स्ट्रॉबेरी की विशेष गन्ध इसकी पहचान बन गयी है। ये चटक लाल रंग की होती है। इसे ताजा भी, फल के रूप में खाया जाता है, साथ ही इसे संरक्षित कर जैम, रस, पाइ, आइसक्रीम, मिल्क-शेक आदि के रूप में भी इसका सेवन किया जाता है।<br>
<br>
<b>बगीचा स्ट्रॉबेरी,</b> फ़्रागार्या × आनानास्सा, एक संकर प्रजाति है जिसकी अपने फल (सामान्य स्ट्रॉबेरी) के लिए दुनिया भर में खेती की जाती है। फल (जो वास्तव में एक बेर नहीं है, लेकिन एक समग्र गौण फल है) व्यापक रूप से अपनी विशिष्ट सुगंध, चमकीले लाल रंग, रसदार बनावट और मिठास के लिए मशहूर है। यह बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है, ताजा अथवा संरक्षित करके फलों के रस, आइसक्रीम और मिल्क शेक के रूप में तैयार खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग बहुतायत में होता है। कृत्रिम स्ट्रॉबेरी खुशबू भी व्यापक रूप से कई औद्योगिक खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल की जाती है।<br>
<br>
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https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-25294108536292443892016-05-08T15:37:00.001+05:302016-05-08T15:42:23.157+05:30कोको पीट : बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका (Coco peat : A solution for without soil farming)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiyNPefMT2MG9vuon86q9Ei6TId2S3fuKm1p8es5McFA9o_b86b7AsS9IA6rwCnJawFJZ4-O8NiDO7KDcqgdsg5OgPJ5TqrXz_3i8PjYRgmwiqQy6izZnNCRZxg2ajdrBGl4BruWmFwy8/s1600/20160505113024.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiyNPefMT2MG9vuon86q9Ei6TId2S3fuKm1p8es5McFA9o_b86b7AsS9IA6rwCnJawFJZ4-O8NiDO7KDcqgdsg5OgPJ5TqrXz_3i8PjYRgmwiqQy6izZnNCRZxg2ajdrBGl4BruWmFwy8/s640/20160505113024.jpg"> </a> </div>
<p>दोस्तों पिछले कुछ दिनों से किसी काम में व्यस्त था इसलिए कोई नई पोस्ट नही कर पाया उसके लिए आप सभी दोस्तों से माफ़ी चाहता हूँ। दोस्तों आज एक एसी पोस्ट लाया हूँ जिसके बारे में सभी जानना चाहते हैं और इसका सुझाव मुझे एक fb friend ने दिया जो मुझसे कुछ दिनों से जुड़े हुए हैं। और मेरी प्रत्येक पोस्ट पढ़ते हैं। </p>
<p>दोस्तों कुछ परिस्थितियों में हम पौधे लगाने की सोच भी नही सकते उनमे से ही एक समस्या है मिट्टी की अर्थात एसी जगह जहाँ मिट्टी नही हो हम पौधे लगाने की कल्पना भी नही कर सकते क्योंकि पौधो की जड़े मिट्टी में ही उगती है।</p>
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<p>लेकिन अब इस समस्या का समाधान मिल गया है। इजरायल ने एक एसी तकनीक विकसित की है जिससे हम बिना मिट्टी के ही पौधे लगा सकते हैं। इस तकनीक का नाम है<b><i> "कोको पीट"</i></b> ।</p>
<p>इस तकनीक का उपयोग भारत में भी कई जगहों पर किया जा रहा है और बहुत से बागवानी प्रेमी इसका लाभ भी ले रहे हैं। </p>
<p><b>क्या है कोको पीट?</b><br>
नारियल के रेशों में प्राकृतिक रूप से बहुत सारे आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं जिनका उपयोग पौधे अपनी विकास क्रिया में करते हैं। इन्ही नारियल के रेशों को कृत्रिम रूप से अन्य खनिज लवणों के साथ मिलाकर कृत्रिम मृदा का निर्माण किया जाता है जिसे "कोको पीट" कहते हैं।</p>
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<p><b>कोको पीट के लाभ</b><br>
1. कोको पीट में जल धारण करने की अदभुत क्षमता होती है जिससे यह बहुत अधिक मात्रा में जल धारण कर सकता है और एक बार पानी देने के बाद कुछ दिनों तक पानी देने की आवश्यकता नही होती है।<br>
2. इसका उपयोग करने पर मिट्टी की आवश्यकता नही रहती है। <br>
3. यह सामान्य मिट्टी की तरह ही कार्य करता है और इसमें पौधों की पैदावार भी अच्छी होती है।<br>
4. सामान्य मिट्टी को बनने में कई साल लग जाते हैं लेकिन इसे कुछ ही दिनों में बना कर उपयोग में लिया जा सकता है।</p>
<p>दोस्तों इसे आप अपने घर में भी बना सकते हैं यह कुछ ही दिनों में बनकर तैयार हो जाता है। मै आपको इसको बनाने की पूरी विधि बताऊंगा लेकिन आज नही पहले मै बनाऊंगा और बनाये हुए कोको पीट की फोटो के साथ आपको बताऊंगा।</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPYkJJHIvylbkrTPlup-_gIKKhvoXz8AKVql1BZBBQMROJr6ntbZC9wR_WLJDbLTwkuxUL9gmmzpPKOk0OzjzCmIjfxius5wC_2E1laR9mMORSMkgOb-Zv4E60xqA2P8xTlhwQEtrTHYE/s1600/20160505110301.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPYkJJHIvylbkrTPlup-_gIKKhvoXz8AKVql1BZBBQMROJr6ntbZC9wR_WLJDbLTwkuxUL9gmmzpPKOk0OzjzCmIjfxius5wC_2E1laR9mMORSMkgOb-Zv4E60xqA2P8xTlhwQEtrTHYE/s640/20160505110301.jpg"> </a> </div>
<p><b>Note:-</b> दोस्तों आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरुर लिखें। दोस्तों आपकी जितनी अधिक प्रतिक्रिया आएगी हम उतनी ही तत्परता से आपकी सहायता करते रहेंगे।<br>
धन्यवाद।</p>
<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-62634819430481367512016-05-01T23:49:00.001+05:302017-09-20T16:20:10.002+05:30मृदा परिक्षण: मृदा की सुरक्षा (soil test)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-S0nMjQ42pqw/VyZIome9w1I/AAAAAAAAAN0/IvRLGicGjPw/s2560/%25255BUNSET%25255D.png" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-S0nMjQ42pqw/VyZIome9w1I/AAAAAAAAAN0/IvRLGicGjPw/s640/%25255BUNSET%25255D.png" style="cursor: hand; cursor: pointer; display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center;" /></a><br />
<b>मिट्टी का नमूना कैसे लें?</b><br />
<br />
मिट्टी जाँच हेतु नमूना सही ढंग से लें क्योंकि थोड़ी से भी असावधानी से मिट्टी की सिफारिश का पूर्ण लाभ नहीं हो सकता ह। खेत से मिट्टी का नमूना लेने कि सही विधि यह है कि जिस खेत से आपको नमूना लेना हो उसे भली-भांति देख लें कि खेत कि मिट्टी में रंग, भारीपन, पौधे की लम्बाई उपज या और कुछ कारण से भिन्नता तो नही। यदि भिन्नता हो तो हर क्षेत्र से ५-६ भिन्न स्थान से १५-२० सेंटीमीटर या एक बिस्ता गहराई तक मिट्टी का नमूना लें। मिट्टी का नमूना लेने के लिए खुरपी या कुदाली से V आकार का एक बिस्ता गहरा गड्डा खोदें। गड्डे के अंदर की सब मिट्टी निकाल दें तथा खुरपी से दो अंगुल मोटा परत ऊपर से नीचे तक खुरच लें और एक साफ कागज में जमा कर लें, इस प्रकार कई स्थानों से जमा की गई मिट्टी को अच्छी प्रकार मिलाकर छाया में सुखा लें और आधा किलो मिट्टी का नमूना थैली में भर दें।<br />
<br />
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<br />
<b>फलों के पेड़ (बगीचे) लगाने के लिए –</b><br />
> दो हेक्टेयर के बीच एक मीटर गड्डा खोदें, जिसका एक दीवार सीधा हो। <br />
>अब सीधी दीवार पर 15, 30, 40, और 100 सें.मी. पर निशान लगायें। <br />
>अब एक बाल्टी को 15 सें.मी. पर निशान लगाये पर रखें तथा खुरपी की सहायता से ऊपर से लेकर इस निशान तक मिट्टी की मोटी परत खुरच कर बाल्टी में रख लें। <br />
>इस प्रकार चारों गहराइयों से नमूना लेकर छाया में सुखाकर जाँच हेतु भेजें।<br />
>तीन सूचना पत्र बनायें। एक सूचना पत्र सावधानी से कपड़ें कि थैली में भर दें, तीसरा अपने पास रखें। <br />
<br />
<b>>सूचना पत्र के साथ नीचे लिखी सूचनाएं भेजें।</b><br />
<br />
(1) किसान का नाम, ग्राम, डाकघर, जिला एवं प्लाट नम्बर<br />
<br />
(2) खेत की स्थिति – नीची, मध्यम नीची (दोन 2, दोन 3, टांड 2,3)<br />
<br />
(3) गाँव का नाम<br />
<br />
(4) नमूना इकट्ठा करने की तिथि<br />
<br />
(5) मिट्टी की किस्में – केवाल, बालुआही।<br />
<br />
(6) कौन सी फसल लगाना चाहते हैं, खरीफ में रबी में, एवं गर्मी में,<br />
<br />
(7) खेत में सिंचाई की सुविधा है या नहीं।<br />
<br />
(8) खेत में पिछले तीन वर्षों में कौन सी खाद कितनी मात्रा में डाली गई है।<br />
<br />
(9) खेत में पिछले वर्ष उपजाई गयी फसलों की औसत उपज।<br />
<br />
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<br />
<b>सावधानी</b><br />
<br />
● फसल अगर कतारों में बोई गयी हो तो कतारों के बीच की जगह मिट्टी न लें।<br />
<br />
● असामान्य स्थान, जैसे सिंचाई की नालियाँ, दल-दली जगह, पुरानीं मेढ़ एवं पेड़ के निकट खाद के ढेर से नमूना न लें।<br />
<br />
● खेत में हरी खाद, कम्पोस्ट तथा रासायनिक खाद डालने के तुरंत बाद मिट्टी का नमूना न लें।<br />
<br />
● मिट्टी का नमूना खाद के बोरे या खाद की थैली में कभी न रखें।<br />
<br />
● खेत से नमूना खेत की गीली अवस्था में न लें। खेत की मिट्टी की जाँच तीन साल में एक बार अवश्य करवाएं।<br />
<br />
● सिंचाई की नालियाँ, दलदली जगह, पेड़ के निकट, पुराना से या जिस जगह खाद रखी गयी हो वहाँ का नमूना न लें।<br />
<br />
● सूचना पत्र को पेन्सिल से लिखें। आप सूचना पत्र की नक़ल अपने पास में रखें क्योंकि मिट्टी जाँच की रिपोर्ट मिलने पर आपको सही मालूम होगा कि खेत में कौन सी फसल लेनी है तथा कितनी खाद या कितना चूना डालना है।<br />
<br />
<b> साभार:- इन्टरनेट </b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-oHKKBhdjzGw/VyZIqztvYQI/AAAAAAAAAN4/FTJ1DO2QIXg/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-oHKKBhdjzGw/VyZIqztvYQI/AAAAAAAAAN4/FTJ1DO2QIXg/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" style="cursor: hand; cursor: pointer; display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center;" /></a><br />
<b>NOTE:- दोस्तों आपको हमारी पोस्ट कैसी लगती है ये जरुर बताएं अगर आपको हमारी पोस्ट में कोई कमी लगती हो तो वो भी बताएं जिससे कि हम इसमें सुधार कर सकें और आप तक और अधिक रुचिकर जानकारियां पहुंचा सकें।<br />
इस साईट को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने में हमारी मदद करें जिससे कि अधिक से अधिक लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर सकें।</b></div>
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https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-51212192649176332822016-05-01T02:35:00.000+05:302016-05-03T14:07:26.546+05:30पौधे कैसे लगायें (How do plantation)<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-84dW3iO90iY/VyUctofNW3I/AAAAAAAAANY/xmAYk5BB8gM/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-84dW3iO90iY/VyUctofNW3I/AAAAAAAAANY/xmAYk5BB8gM/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br />
<b>पौधा लगाने की विधि:</b> <br />
<br />
[1] पौधा गड्ढे में उतनी गहराई में लगाना चाहिए जितनी गहराई तक वह नर्सरी या गमले में या पोलीथीन की थैली में था। अधिक गहराई में लगाने से तने को हानि पहुँचती है और कम गहराई में लगाने से जड़े मिट्टी के बाहर जाती है, जिससे उनको क्षति पहुँचती है।<br />
<br />
[2] पौधा लगाने के पूर्व उसकी अधिकांश पत्तियों को तोड़ देना चाहिए लेकिन ऊपरी भाग की चार-पांच पत्तियाँ लगी रहने देना चाहिए। पौधों में अधिक पत्तियाँ रहने से वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) अधिक होता है अर्थात् पानी अधिक उड़ता है। पौधा उतने परिमाण में भूमि से पानी नहीं खींच पाता क्योंकि जड़े क्रियाशील नहीं हो पाती है। अतः पौधे के अन्दर जल की कमी हो जाती है और पौधा मर भी सकता है।<br />
<br />
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<br />
[3] पौधे का कलम किया हुआ स्थान अर्थात् मूलवृन्त और सांकुर डाली या मिलन बिन्दु (Graft Union) भूमि से ऊपर रहना चाहिए। इसके मिट्टी में दब जाने से वह स्थान सड़ने लग जाता है और पौधा मर सकता है।<br />
<br />
[4] जोड़ की दिशा दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर रहना चाहिए। ऐसा करने से तेज हवा से जोड़ टूटता नहीं है।<br />
<br />
[5] पौधा लगाने के पश्चात् उसके आस-पास की मिट्टी अच्छी तरह दबा देनी चाहिए, जिससे सिंचाई करने में पौधा टेढ़ा न हो पाए।<br />
<br />
[6] पौधा लगाने के तुरन्त बाद ही सिंचाई करनी चाहिए।<br />
<br />
[7] जहाँ तक सम्भव हो पौधे सायंकाल लगाये जाने चाहिए।<br />
<br />
[8] यदि पौधे दूर के स्थान से लाए गये हैं तो उन्हें पहले गमले में रखकर एक सप्ताह के लिए छायादार स्थान में रख देना चाहिए। इससे पौधों के आवागमन में हुई क्षति पूरी हो जाती हैं। इसके पश्चात् उन्हें गढ्ढों में लगाना चाहिए। तुरन्त ही गढ्ढे में लगा देने से पौधों के मरने का भय रहता है।<br />
<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-W-LDj8UnKpk/VyUcylbsiTI/AAAAAAAAANc/CNzcdBsypFE/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-W-LDj8UnKpk/VyUcylbsiTI/AAAAAAAAANc/CNzcdBsypFE/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br />
<b>पौधे जो भी लगाये जाएँ उनमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए</b>, <br />
<br />
यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है:<br />
<br />
> पौधे की उम्र कम से कम एक वर्ष होनी चाहिए। दो वर्ष से अधिक उम्र के पौधे भी नहीं लगाना चाहिए, उनके मरने का अधिक भय रहता है।<br />
<br />
> पौधे यथा सम्भव गूटी विधि से या कलिकायन या उपरोपण विधि से तैयार किये हुए होने चाहिए। ऐसे पौधे कलमीया ग्राफ्टेड (Grafted) पौधे कहलाते है। ऐसे पौधों में अपने पेतृक वृक्ष से कम से कम गुणों में विभिन्नता होती है। बीज से तैयार किए गये पौधे पैतृक गुणों को स्थिर नहीं रख पाते।<br />
<br />
> पौधे अपने किस्मों के अनुसार सही होने चाहिए। अतः पौधे विश्वसनीय नर्सरी से ही मंगाए जाने चाहिए। ऐसी नर्सरी से पौधे नहीं लेना चाहिए जिससे मातृ वृक्ष (Mother Plants) न हो।<br />
<br />
> किसी भी प्रकार के रोग से संक्रमित नहीं होने चाहिए।<br />
<br />
> एक तने वाले सीधे, कम ऊँचाई वाले, फैले हुए उत्तम रहते है।<br />
<br />
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<br />
> पौधों का मिलन बिन्दु (Graft Union) अच्छी तरह जुड़ा होना चाहिए।<br />
<br />
> कलिकायन या उपरोपण किए हुए पौधे में मिलन बिन्दु भूमि के कम से कम दूरी पर हो अर्थात् मूलवृन्त (Root Stock) का भाग या तना कम से कम लम्बाई का होना चाहिए।<br />
<br />
> पौधा ओजस्वी (Vigrous) तेजी से बढ़ता हुआ हो।<br />
<br />
> पौधा पोलीथीन या गमला में लगा हुआ हो। ऐसे पौधे लगाने पर कम मरते हैं।<br />
<br />
> यदि पौधे नर्सरी से उखाड़े गये हो तो उनकी जड़ों में पर्याप्त मिट्टी का पिण्ड होना चाहिए।<br />
<br />
<br />
<b>साभार:- इन्टरनेट</b>
<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-GFYi3-0Yln8/VyUc0pf5OaI/AAAAAAAAANg/kb2JcIyGnR0/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-GFYi3-0Yln8/VyUc0pf5OaI/AAAAAAAAANg/kb2JcIyGnR0/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br />
<b>दोस्तों हमारा उद्देश्य है कि हमारे गाँव, क्षेत्र व देश सभी प्रकार से खुश रहे जिसके लिए पौधे लगाना अत्यंत आवश्यक है इसलिए हर वर्ष कम से कम एक पौधा जरुर लगायें।</b><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-9326433579574541332016-04-30T00:51:00.001+05:302016-05-03T14:11:25.271+05:30शीशम के औषधीय गुण medicinal benefits of shisham<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgemE5Sdz11ezzsON4MwZI72XNv3iF6T58S7Rbqfdtdqd-YNFT92VJHMg70Dzm0ljD7pQliMvsKfmcA_8btfXpWmZw2n8z9KMI50Q3stUs59JvZ9TeQNlBC618cthkkQrocvxrGqV4xVvQ/s1600/20160430005726.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgemE5Sdz11ezzsON4MwZI72XNv3iF6T58S7Rbqfdtdqd-YNFT92VJHMg70Dzm0ljD7pQliMvsKfmcA_8btfXpWmZw2n8z9KMI50Q3stUs59JvZ9TeQNlBC618cthkkQrocvxrGqV4xVvQ/s640/20160430005726.jpg"> </a> </div> <p><b>1. शीशम के फायदे</b><br>
शीशम को आयुर्वेद में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग किया जाता है। शीशम के पत्तों से निकलने वाले चिपचिपे पदार्थ को कई रोगों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल कोदर्दनाशक, अवसादरोधी, सड़न रोकने वाले, कामोत्तेजक, जीवाणु रोधक, कीटनाशक और स्फूर्तिदायक आदि के तौर पर प्रयोग किया जाता है। ब्राजील में शीशम के सदाबहार विशालकाय पेड़ पाये जाते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एनिबा रोजा ऐंडोर है। इसकी लकड़ी महंगी होती है। इसलिए इसका प्रयोग इमारतों में अधिक किया जाता है।</p>
<p><b>2. अवसाद से दूर रखने में सहायक</b><br>
शीशम के तेल का सेवन करने से अवसाद ग्रस्त रोगियों को कुछ ही देर में आराम मिल जाता है। इसका सेवन आपको उदासी और निराशा से दूर रखता है। साथ ही जिंदगी में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने में मदद करता है। खाने में इसका प्रयोग उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है जोहाल-फिलहाल ही अपने किसी लक्ष्य को नहीं पा सके।</p>
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<p><b>3. दर्द में राहत</b><br>
यदि आपके दांतों में, सिर में या फिर जोड़ों में दर्द हैं तो इसमें शीशम का तेल काफी लाभकारी होता है। दांत में दर्द होने पर शीशम के तेल का फोया (रुई में तेल लगाकर) दांत के नीचे रख लें, इससे कुछ ही देर में आराम मिलेगा। सिर में दर्द होने पर शीशम के तेल की मालिश फायदेमंद होती है। वहीं जोड़ों में दर्द की समस्या में शीशम का तेल गर्म करके लगाने पर आराम देता है।</p>
<p><b>4. हृदय रोग में फायदेमंद</b><br>
यदि आपका कोलेस्ट्राल बढ़ गया है और आप हृदय रोग से ग्रस्त हैं तो शीशम के तेल का सेवन आपके लिए रामबाण साबित हो सकता है। शीशम के तेल का सेवन रक्त प्रवाह को बेहतर रखता है। इस तेल से बना खाना खाने से पाचन शक्ति भी मजबूत होती है।</p>
<p><b>5. मितली का उपचार</b><br>
मितली आना या जी मिचलाना बेहद खराब स्थिति होती है। ऐसे में कुछ भी अच्छा नहीं लगता, शरीर में बेचैनी रहती है। इस तरह की परेशानी होने पर शीशम के तेल का सेवन फायदेमंद रहता है। इसके अलावा उल्टी आने, कफ की समस्या, सर्दी, तनाव, त्वचा संबंधी रोग और मुहांसों के उपचार में भी शीशम का तेल कारगर रहता है।</p>
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<p><b>6. चोट का घाव</b><br>
यदि आपके शरीर के किसी हिस्से में चोट का घाव है तो इसे भरने में शीशम का तेल सहायक है। घाव वाली जगह पर आप शीशम के तेल में हल्दी मिलाकर बांध लें। इससे घाव जल्द भर जाएगा। इसके अलावा फटी हुई एडियों (बिवाई) पर शीशम का तेल लगाने से एडियों की रंगत लौट आती है।</p>
<p><b>7. आंखों की लालिमा का उपचार</b><br>
कीट-पतंगा गिरने से यदि आंख लाल हो गई है तो उसका उपचार शीशम के पत्तों से संभव है। आंखों के दर्द में भी शीशम काफी फायदेमंद है। शीशम के कोमल पत्तों को साफ करके मिक्सी मेंपीस लें। अब इसकी लुगदी को आंखों पर रात को सोते समय बांध लें। इससे आंखों की लालिमा और दर्द दोनों में ही राहत मिलेगी।
<br />
<br />
<b> साभार:- इन्टरनेट </b>
</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyviHP-Z5987bZFTLXrM8tsKmw2edOHFaxemChH-EZKgPvduRBKRQ4nFqhkMp1hrlJy9bUGalu4wdwuMIUNZDoNqyWg6eACtFBr9pPA-dB0-ol72AMYqodTSmBWpqWXAte-BoBAOuwQvI/s1600/20160430005404.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyviHP-Z5987bZFTLXrM8tsKmw2edOHFaxemChH-EZKgPvduRBKRQ4nFqhkMp1hrlJy9bUGalu4wdwuMIUNZDoNqyWg6eACtFBr9pPA-dB0-ol72AMYqodTSmBWpqWXAte-BoBAOuwQvI/s640/20160430005404.jpg"> </a> </div><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-75713231256107332402016-04-30T00:25:00.001+05:302016-05-03T14:17:09.700+05:30शीशम के चमत्कार Dalbergia sissoo<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghkCS7iZbiGbrqxuCNWIvF113W41NnHcyNE8CXSZ5zdkVw9BtCsuhUekNiK98YRgQWWbG3gYTK-GD95W-vTH8iNwwNsIRGk0mLH5-CYU-RimntXlx5idzeJ8jStVH4rh3rZjx5A_exs4g/s1600/20160430005844.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghkCS7iZbiGbrqxuCNWIvF113W41NnHcyNE8CXSZ5zdkVw9BtCsuhUekNiK98YRgQWWbG3gYTK-GD95W-vTH8iNwwNsIRGk0mLH5-CYU-RimntXlx5idzeJ8jStVH4rh3rZjx5A_exs4g/s640/20160430005844.jpg"> </a> </div>
<p><b>परिचय -</b><br>
शीशम (Shisham, <b><i>Dalbergia Sissoo</i></b>, The Blackwood, Rosewood) बहुपयोगी वृक्ष है। इसकी लकड़ी, पत्तियाँ,जड़ें सभी काम में आती हैं। इस की लकड़ी फर्नीचर एवं इमारती लकड़ी के लिये बहुत उपयुक्त होती है। पत्तियाँ पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त चारा होती हैं। जड़ें भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। पत्तियाँ व शाखाएँ वर्षा-जल की बूँदों को धीरे-धीरे ज़मीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं। सारे भारत में शीशम के लगाये हुये अथवा स्वयंजात पेड़ मिलते हैं। इस पेड़ की लकड़ी और बीजों से एक तेल मिलता है जो औषधियों में इस्तेमाल किया जाताहै।</p>
<p>शीशम के बीज दिसंबर-जनवरी माह में पेड़ों से प्राप्त होते हैं। एक पेड़ से एक से दो किलो बीज मिल जाते हैं। बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार होते हैं। बीजों को दो तीन दिन पानी में भिगोने के बाद बोने से अंकुरण जल्दी होता है। इसलिए इन्हें 10 सेमी की दूरी पर कतार में 1-3 सेमी के अंतर से व 1 सेमी की गहराई में बोया जाता है। नर्सरी में बीज लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च है। पौधों की लंबाई 10-15 सेमी होने पर इन्हें सिंचित क्षेत्र में अप्रैल-मई व असिंचित क्षेत्र में जून-जुलाई में रोपा जाता है। रोपों को प्रारंभिक दौर में पर्याप्त नमी मिलना जरूरी है।</p>
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<p><b>कहाँ लगा सकते हैं</b>:-<br>
शीशम के पेड़ सड़क-रेल मार्ग के दोनों ओर, खेतों की मेड़, स्कूल व पंचायत भवन परिसर, कारखानों के मैदान तथा कॉलोनी के उद्यान में लगा सकते हैं। मालवा-निमाड़ के खंडवा-खरगोन ज़िलों तथा चंबल संभाग के श्योपुर क्षेत्र में इसे उगाया जा सकता है।</p>
<p><b>कैसे रोपे जाते हैं:-</b><br>
पौधे रोपने के लिए पहले से ही 1 फीट गोलाई व 1 फुट गहरा गड्‌ढा खोदकर उसमें पौध मिश्रण भर दिया जाता है। पेड़ों के बीच कितनी दूरी रखी जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ की मिट्टी कैसी है व इन्हें किस स्थान पर लगाना है। हल्की मिट्टी में बढ़वार कम होती है। इसी प्रकार जहाँ सिर्फ शीशम की खेती करना हो, वहाँ ढाई से तीन मीटर की गहराई में लगाया जाता है। भारी मिट्टी वाले उपजाऊ खेतों की मेड़ पर इन्हें कम से कम पाँच मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।</p>
<p><b>कीड़ों का उपचार जरूरी:-</b><br>
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीट रक्षक रसायनों से उपचारित करना जरूरी है।</p>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij4mI93C27DWmTQ-So7WYoiGnAIknvvG6CBxJf7qwSoULb6g255E4zNxHrLH5UMJrSfuk3-9Fp-O9v1Hrtm5VkCE_Cf76bOS-wu5atkY7dbmoy2_lDIDh3JevbSfEm1T0xpzdOvn1V3jc/s1600/20160430013145.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij4mI93C27DWmTQ-So7WYoiGnAIknvvG6CBxJf7qwSoULb6g255E4zNxHrLH5UMJrSfuk3-9Fp-O9v1Hrtm5VkCE_Cf76bOS-wu5atkY7dbmoy2_lDIDh3JevbSfEm1T0xpzdOvn1V3jc/s640/20160430013145.jpg"> </a> </div>
<p><b>स्वरूप</b>:-<br>
शीशम के पेड़ 100 फुट तक ऊंचे होते हैं। इसकी छाल मोटी, भूरे रंग की तथा लम्बाई के रूख में कुछ विदीर्ण होती है। शीशम की नई टहनियां कोमल एवं अवनत होती है। शीशम के पत्ते एकान्तर, पत्तों की संख्या में 3 से 5 एकान्तर, 1 से 3 इंच लम्बे, रूपरेखा में चौड़े लट्वाकर होते हैं। शीशम के फूल पीताभ-सफेद, फली लम्बी, चपटी तथा 2 से 4 बीज युक्त होती है। शीशम का सारकाष्ठ पीताभ भूरे रंग का होता है। इसकी एक दूसरी प्रजाति का सारकाष्ठ कृष्णाभ भूरे रंग की होती है। शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमीतक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।</p>
<p><b>रासायनिक संघटन</b>:-<br>
शीशम के तने में तेल पाया जाता है और फलियों में टैनिन और बीजों में भी एक स्थिर तेल पाया जाता है।</p>
<p><b>गुण</b>:-<br>
शीशम, कड़वा, गर्म, तीखा, सूजन, वीर्य में गर्मी पैदा करने वाला,गर्भपात कराने वाला, कोढ़ (कुष्ठरोग), सफेद दाग, उल्टी, पेट के कीड़े को खत्म करने वाला, बस्ति रोग, हिक्का (हिचकी), शोथ (सूजन), विसर्प, फोड़े-फुन्सियों, ख़ून की गंदगी को दूर करने वाला तथा कफ (बलगम) को नष्ट करने वाला है। शीशम सार स्नेहन, कषैला, दुष्ट व्रणों का शोधन करने वाला को खत्म करने वाला होता है। शीशम, अर्जुन, ताड़ चंदन सारादिगण, कुष्ठ रोग को नष्ट करता है, बवासीर, प्रमेह और पीलिया रोग कोखत्म करता है और मेद के शोधक है। शीशम,पलाश, त्रिफला, चित्रक यह सब मेदा नाशक तथा शुक्र दोष को नष्ट करने वाला है एवं शर्करा को दूर करने वाला है।<br>
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<p><b>चमत्कारी खोज</b>:-<br>
यूं तो 'शीशम' से ज्यादातर लोग परिचित होंगे, लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि इमारती लकड़ी के लिए मशहूर शीशम अब टूटी हुई हड्डी को सबसे तेज जोडऩे वाला पौधा भी बन गया है। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ) के वैज्ञानिकों ने शीशम में हड्डी को जोडऩे वाले महत्वपूर्ण गुण की तलाश की है। संस्थान ने इसका लाइसेंस गुजरात की एक कंपनी की सौंप दिया है और उम्मीद जताई जा रही है कि अगले पांच-छह महीने में यह औषधि बाजार में उपलब्ध हो जाएगी।</p>
<p>इंडोक्राइन विभाग की डॉ.रितु त्रिवेदी बताती हैं कि खास बात यह है कि जिस फ्रेक्शन को 'रैपिड फ्रैक्चर हीलिंग एजेंट' के रूप में प्रयोग किया गया है उसे शीशम की पत्तियों से प्राप्त किया गया है। चूंकि पत्तियां ऐसा स्रोत हैं, जो सीमित नहीं है इसलिए इसके निर्माण के लिए जरूरी कच्चे माल की कोई कमी नहीं होगी। डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक मेडिसिनल केमिस्ट्री के डॉ.राकेश मौर्या के सहयोग से इस पर शोध किया गया। शोध में विक्रम खेदगीकर, प्रियंका कुशवाहा, प्रीती दीक्षित व पदम कुमार भी शामिल थे।</p>
<p><b>आधे समय में जुड़ती है हड्डी</b>:-<br>
अमूमन फ्रैक्चर होने पर हड्डी जुडऩे में तीन सप्ताह का समय लगता है, लेकिन इस औषधि के इस्तेमाल से आधे समय में हड्डी जुड़ जाती हैं। डॉ. त्रिवेदी ने बताया कि यह एजेंट रजोनिवृत्ति के उपरांत महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले फ्रैक्चर में भी लाभकारी होगी।
<br/>
<br/>
<b>साभार:- इन्टरनेट</b>
<br />
</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3MJ9FBbOg1FucGILOR8VdZfxA0v4Ga9ApjNhxVaJgo4HcGRqw8atQbwCseETuiK6NMxj4GWo3VAI2BebF2BzvW_HdzVgTZlOcuLO1IvifAExomVOr2xHtpYLsPHHbfxVCYZwCSP7weg0/s1600/20160430013043.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3MJ9FBbOg1FucGILOR8VdZfxA0v4Ga9ApjNhxVaJgo4HcGRqw8atQbwCseETuiK6NMxj4GWo3VAI2BebF2BzvW_HdzVgTZlOcuLO1IvifAExomVOr2xHtpYLsPHHbfxVCYZwCSP7weg0/s640/20160430013043.jpg"> </a> </div><div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
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<p>महाकवि तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी से इस प्रकार सम्मान दिया है-</p>
<p><b>"रामं दुर्वादल श्यामं, पद्माक्षं पीतवाससा।"</b></p>
<p>प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर सिद्ध होती थी, उसे हमारे पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्व और भी बढ़ा दिया। दूब भी ऐसी ही वस्तु है। यह सारे देश में बहुतायत के साथ हर मौसम में उपलब्ध रहती है। दूब का पौधा एक बार जहाँ जम जाता है, वहाँ से इसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है। इसकी जड़ें बहुत ही गहरी पनपती हैं। दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है, यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है।</p>
<p>दूब को संस्कृत में 'दूर्वा', 'अमृता','अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से जानते हैं। दूब घास पर उषा काल में जमी हुई ओस की बूँदें मोतियों-सी चमकती प्रतीत होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में हरी-हरी ओस से परिपूर्ण दूब पर भ्रमण करने का अपना निराला ही आनंद होता है। पशुओं के लिए ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थी|अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है।</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvyfrd_VRbLtHznfozhiGsStaPlLtM40GY8kLvKwt08kBAhAz68cCTkHwYCAwlDs8Z9SThl6nEZ7UjAosjYQjwCySw3Q6ccT1QswI1XWr5zP5DRWh0FU1-odJ5r8y6Z3ncW4QN_cK9w2U/s1600/20160415195524.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvyfrd_VRbLtHznfozhiGsStaPlLtM40GY8kLvKwt08kBAhAz68cCTkHwYCAwlDs8Z9SThl6nEZ7UjAosjYQjwCySw3Q6ccT1QswI1XWr5zP5DRWh0FU1-odJ5r8y6Z3ncW4QN_cK9w2U/s640/20160415195524.jpg"> </a> </div>
<p>दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-</p>
<p>1- संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।</p>
<p>2 -इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।</p>
<p>3- दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।</p>
<p>4- दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।</p>
<p>5- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।</p>
<p>6- इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।</p>
<p>7- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है।</p>
<p>8- इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।</p>
<p>9- यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।</p>
<p>10- दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।</p>
<p>11- इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।</p>
<p>12- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।</p>
<p>13- इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने सेवे तंदुरुस्त होते है।</p>
<br />
<br />
<b> स्रोत:- इन्टरनेट </b>
<p><b>Note:- दोस्तों हमारे आस पास ऐसी ही कई औषधियां हैं जिनकी जानकारी नही होने से हम उनका सदुपयोग नही कर पाते लेकिन अब ये नही होगा क्योंकि अब हम आप तक हर प्रकार की औषधी की सम्पूर्ण और सटीक जानकारी पंहुचाते रहेंगे। इसके लिए आप हमारी साईट समय समय पर विजिट करते रहें।</b></p>
<p><b><i>धन्यवाद।</i></b></p>
<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-54178267612518096222016-04-12T22:54:00.000+05:302016-05-03T14:01:38.591+05:3030 बीघा में खेती कर बेचीं तुलसी माला, मिला अच्छा मुनाफा<b>भरतपुर</b><br />
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://lh3.googleusercontent.com/-Xw-HhJ4V-M4/Vw0vF-cipCI/AAAAAAAAAJg/DEYy1p5N3g0/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://lh3.googleusercontent.com/-Xw-HhJ4V-M4/Vw0vF-cipCI/AAAAAAAAAJg/DEYy1p5N3g0/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" border="0" /></a><br />
घर के आंगन में धार्मिक महत्व के लिए लगाई जाने वाली तुलसी की अब व्यवसाय के तौर पर भी खेती की जाने लगी है। डीग के खेरिया पुरोहित के किसानों ने यह प्रयोग किया है। यहाँ करीब 30 बीघा क्षेत्र में तुलसी की खेती हो रही है। इसके पत्तो से आयुर्वेदिक दवा बनती है और लकड़ी माला बनाने के काम आती है। इसलिए तुलसी की माला बनाने का काम कुटीर उद्योग का रूप लेने है।<br />
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://lh3.googleusercontent.com/-xt-NoMlRYqM/Vw0vLr7E7sI/AAAAAAAAAJk/7fhI4OenQsk/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://lh3.googleusercontent.com/-xt-NoMlRYqM/Vw0vLr7E7sI/AAAAAAAAAJk/7fhI4OenQsk/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" border="0" /></a><br />
तुलसी की खेती और माला बनाने का काम डीग, नदबई, कामां के अलावा गाँव बहताना, बहरावली, इकलेरा, शाहपुरा, कुचावटी, बहज, बैलारा, चैनपुरा, नदबई, नगला हरचंद में हो रहा है। करीब 30 बीघा में खेती हो रही है। इन गांवों में करीब तीन हजार महिलाएं माला बनाने का काम करती है। मालाएँ मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, बरसाना, नन्दगाँव, गोकुल, अयोध्या, बनारस , इलाहबाद, हरिद्वार, जयपुर, आगरा, नाथद्वारा, कांकरोली, पुष्कर, अहमदाबाद, सोमनाथ, मुम्बई, जगन्नाथपुरी धाम में बिकती है। लूपिन संस्था ने महिलाओं को बेटरी चालित मशीन दी है। इससे विभिन्न आकर के दाने तैयार कर माला बनाई जाती है। लूपिन निदेशक सीताराम गुप्ता ने बताया है किइन मशीनों को IIT दिल्ली के छात्रों ने विकसित किया है। मशीन से बने दानों की पोलिश करने कइ आवश्यकता नहीं रहती है।<br />
<br />
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<br />
<b>पथरी-चर्मरोग होता है खत्म</b><br />
आयुर्वेद चिकित्सक चन्द्रप्रकाश दीक्षित ने बताया कि तुलसी सर्वरोग संहारक है। तुलसी में विद्युत शक्ति होती है। तुलसी पथरी, रक्तदोष, पसलियों के दर्द, चर्मरोग, कफ एवं वायु रोगों में लाभदायक होती है। जुकाम, ह्रदय, श्वसन, दंत, चर्मरोग में उपयोगी है।<br />
<br />
<b>मुनाफा</b><br />
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://lh3.googleusercontent.com/-g1Q-5CTKGxA/Vw0vOV64LaI/AAAAAAAAAJo/kBuC9Oss3bU/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://lh3.googleusercontent.com/-g1Q-5CTKGxA/Vw0vOV64LaI/AAAAAAAAAJo/kBuC9Oss3bU/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" border="0" /></a><br />
खेडिया पुरोहित के किसान श्रीचंद लोधा ने बताया कि तुलसी शाखा, तना एवं जड़ों से माला बनती हैं। जो 30 से 200 रूपये किलो की दर से बिकती है जड़ों से बनी माला 250 से 300 रूपये की बिकती है। एक किलो तने से करीब 40 मालाएँ बनती हैं। ब्रेसलेट भी बनाए जाने लगे हैं। पते करीब 35 हजार रूपये क्विंटल और बीज 15 हजार रूपये प्रति क्विंटल बिकते हैं।<br />
<br />
<b>बुवाई</b><br />
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://lh3.googleusercontent.com/-uaD5sRb3EOA/Vw0vR4x3NII/AAAAAAAAAJs/y6982k7zwLc/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://lh3.googleusercontent.com/-uaD5sRb3EOA/Vw0vR4x3NII/AAAAAAAAAJs/y6982k7zwLc/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" border="0" /></a><br />
किसान सुदामा ने बताया कि तुलसी की बुवाई मई जून माह में की जाती है। एक-दो पानी देने के बाद तुलसी के पौधों में फूल आना शुरू हो जाते हैं और बाद में कटाई कर सुखाया जाता है, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं। उन्हें छाया में सुखाया जाता है। इसी प्रकार तुलसी के बीजों को भी पौधों से झड़ा कर एकत्रित कर लिया जाता है। इसकी 22 किस्म है।<br />
<br />
<b> साभार:- दैनिक भास्कर </b>
<br />
<br />
आप किसान सेवा केंद्र पर निशुल्क सम्पर्क कर सकते हैं:- 18001801551<div class="blogger-post-footer">Mukesh Kumar Pareek
https://www.hamarepodhe.com</div>Mukesh kumar Pareekhttp://www.blogger.com/profile/06500676819810007531noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-103262540369333953.post-46612523324083881062016-04-11T00:29:00.000+05:302017-09-20T16:20:30.753+05:30कुछ महत्वपूर्ण फसलों के अंग्रेजी, वानस्पतिक एवं हिंदी नामों की सूची Glossary of English, Botanical and Hindi Names of Important Crops<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-hhDVA2qVZfU/VwqihdRaeFI/AAAAAAAAAJI/bWt0rvAx1jk/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-hhDVA2qVZfU/VwqihdRaeFI/AAAAAAAAAJI/bWt0rvAx1jk/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" style="cursor: hand; cursor: pointer; display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center;" /></a><br />
दोस्तों कई दिनों से मै वानस्पतिक नाम लिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन लिख नही पा रहा था अंततः आज मै आप तक फसलों के वानस्पतिक नाम पहुंचा ही रहा हूँ। इसमें कोई त्रुटि रह गई हो तो जरुर बताना मै सुधार करने की कोशिश करूंगा।<br />
<br />
<b>English - Botanical - Hindi (Roman) - हिन्दी</b><br />
<br />
Bara (Bulrush or spiked millet) - <b>Pennisetum typhoides</b> - Bajra - बाजरा<br />
<br />
Barley - <b>Hordeum vulgare</b> - Jau - जौ<br />
<br />
Barnyard millet - <b>Echinochloa frumentacea</b> - Kutki - कुतकी<br />
<br />
Cholam (Great Millet) - <b>Sorghum bicolor</b> - Jowar - ज्वार<br />
<br />
Common Millet - <b>Panicum milliaceum</b> - Cheena - चीना<br />
<br />
Little Millet - <b>Panicum milliare</b> - Sawan - सावन <br />
<br />
Italian foxtail Millet - <b>Setaria italica</b> - Kangani - कांगनी<br />
<br />
Kodo Millet - <b>Paspalum scrobiculatum</b> - Kodon - कोदन<br />
<br />
Maize or Indian corn - <b>Zea mays</b> - Makka - मक्का<br />
<br />
Oat - <b>Avena sativa</b> - Jaie - जेई<br />
<br />
Ragi - <b>Eleusine coracana</b> - Mandua - मंडवा<br />
<br />
Paddy (Rice) - <b>Oryza sativa</b> - Dhan (Chawal) - धान (चावल)<br />
<br />
Wheat - <b>Triticum aestivum</b> - Gehun - गेंहूँ<br />
<br />
Black gram - <b>Vigna mungo</b> - Urad - उड़द<br />
<br />
Chickpea (Bengal gram) - <b>Cicer arietinum</b> - Chana - चना<br />
<br />
Chicking vetch - <b>Lathyrus sativus</b> - Khesari - केसरी<br />
<br />
Cluster Bean - <b>Cyamopsis tetragonoloba</b> - Guar - ग्वार<br />
<br />
Cowpea - <b>Vigna unguiculata</b> - Lobia - लोबिया<br />
<br />
Green Gram - <b>Vigna radiata</b> - Mung - मूंग<br />
<br />
Horsegram - <b>Dolichos biflorus</b> - Kulthi - कुल्थी<br />
<br />
Kidney bean - <b>Vigna aconitifolia</b> - Moth - मोठ<br />
<br />
Lentil - <b>Lens culinaris</b> - Masur - मसूर<br />
<br />
Peas - <b>Pisum sativum var Arvense</b> - Matar - मटर<br />
<br />
Red gram (Pigion pea) - <b>Cajanus cajan</b> - Tur, Arhar - अरहर<br />
<br />
Soyabean - <b>Glycine max</b> - Soyabean - सोयाबीन<br />
<br />
Sugarcane - <b>Saccharum officinarum</b> - Ganna - गन्ना<br />
<br />
Apple - <b>Malus sylvestris</b> - Seb - सेब<br />
<br />
Apricot - <b>Prunus armeniaca</b> - Khoobani - खूबानी<br />
<br />
Cashewnut - <b>Anacardium occidentale</b> - Kaju - काज़ू<br />
<br />
Fig - <b>Ficus carica</b> - Anjeer - अंजीर<br />
<br />
Grape - <b>Vitis vinifera</b> - Angur - अंगूर<br />
<br />
Guava - <b>Psidium guajava</b> - Amrood - अमरुद<br />
<br />
Jackfruit - <b>Artocarpus heterophyllus</b> - Katahal - कटहल<br />
<br />
Lemon - <b>Citrus lemon</b> - Nimbu - निंबू<br />
<br />
Lime - <b>Citrus orantifolia</b> - Bara Nimbu - बड़ा निंबू<br />
<br />
Litchi - <b>Litchi chinensis</b> - Litchi - लीची<br />
<br />
Mango - <b>Magnifera indica</b> - Aam - आम<br />
<br />
Orange Mandar - <b>Citrus reticulata</b> - Santara, Narangi - संतरा, नारंगी<br />
<br />
Papaya - <b>Carica papaya</b> - Papeeta - पपीता<br />
<br />
Pear - <b>Pyrus communis</b> - Naspati - नाशपाती<br />
<br />
Pineapple - <b>Ananas comosus</b> - Ananas - अनानास<br />
<br />
Banana - <b>Musa paradisiaca</b> - Kela - केला<br />
<br />
Pomegranate - <b>Punica granatum</b> - Anaar - अनार<br />
<br />
Sweet Orange - <b>Citrus sinensis</b> - Melta, Mosambi - मौसमी<br />
<br />
Ash gourd - <b>Benincasa hispida</b> - Petha - पेठा<br />
<br />
Beet - <b>Beta vulgaris</b> - Chukandar - चुकदंर<br />
<br />
Bitter gourd - <b>Momordica charantia</b> - Karela - करेला<br />
<br />
Bottle gourd - <b>Lagenaria siceraria</b> - Lauki - लौकी<br />
<br />
Brinjal - <b>Solanum melongena</b> - Baingan - बैंगन<br />
<br />
Cabbage - <b>Brassica oleracea var., Capitata</b> - Band gobi - बन्द गोभी<br />
<br />
Carrot - <b>Daucus carota</b> - Gajar - गाजर<br />
<br />
Cauliflower - <b>Brassica oleracea var. Botrytis</b> - Phul gobi - फूल गोभी<br />
<br />
Cowpea - <b>Vigna unguiculata</b> - Lobia - लोबिया<br />
<br />
Cucumber - <b>Cucumis sativus</b> - Kheera - खीरा<br />
<br />
French bean - <b>Phaseolus vulgaris</b> - Faras bean - फरास बीन<br />
<br />
Indian flat bean or sem - <b>Dolichos lablab</b> - Sem - सेम<br />
<br />
Knol Khol - <b>Brassica oleracea var, Gongylodes</b> - Ganth gobi - गाँठ गोभी<br />
<br />
Lady's finger - <b>Abelmoschus esculentus</b> - Bhindi - भिंडी<br />
<br />
Little gourd - <b>Coccinia cordifolia</b> - Kundur - कुंदूर<br />
<br />
Musk melon - <b>Cucumis melon</b> - Kharbooza - खरबूज़ा<br />
<br />
Onion - <b>Allium cepa</b> - Piyaz - प्याज<br />
<br />
Pointed gourd - <b>Trichosanthes dioica</b> - Parwal, Petal - परवल<br />
<br />
Potato - <b>Solanum tuberosum</b> - Aaloo - आलू<br />
<br />
Pumpkin - <b>Cucurbita moschata</b> - Sitaphal, Lal Kaddu, Kumbhra - सीताफल, लाल कद्दू, कुम्भड़ा<br />
<br />
Radish - <b>Raphanus sativus</b> - Muli - मूली<br />
<br />
Round gourd of India - <b>Citrullus vulgaris var., Fistulosus</b> - Tinda - टिंडा<br />
Snap melon - <b>Cucumis melowar, momordica</b> - Phoot - फूट<br />
<br />
Snake gourd - <b>Trichosanthes anguina</b> - Chachinda - कचिंदा<br />
<br />
Tomato - <b>Lycopersicon esculentum</b> - Tamatar - टमाटर<br />
<br />
Turnip - <b>Brassica rapa</b> - Shalgam - शलगम<br />
<br />
Water melon - <b>Cirtrullus vulgaris</b> - Tarbooz - तरबूज़<br />
<br />
Betal Leave - <b>Piper betle</b> - Paan - पान<br />
<br />
Betalnut(arecanut) - <b>Areca catechu</b> - Supari - सुपारी<br />
<br />
Indian hemp - <b>Cannabis sativa</b> - Bhang - भांग<br />
<br />
Opium - <b>Papaver somniferum</b> - Afeem - अफीम<br />
<br />
Tobacco - <b>Nicotiana tabacum Nicotiana rustica</b> - Tambaku - तम्बाकू<br />
<br />
Black pepper - <b>Piper nigrum</b> - Kalimirch - कालीमिर्च<br />
<br />
Cardamom, Cardamum (lesser) - <b>Elettaria cardamomum</b> - Chhoti lIaichi - छोटी इलायची<br />
<br />
Chillies - <b>Capsicum annuum</b> - Lalmirch - लालमिर्च<br />
<br />
<br />
<b>स्रोत:- इन्टरनेट</b>
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-ohhmXiDj8Po/VwqimeyC88I/AAAAAAAAAJM/BUIMfEWezc8/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-ohhmXiDj8Po/VwqimeyC88I/AAAAAAAAAJM/BUIMfEWezc8/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg" style="cursor: hand; cursor: pointer; display: block; margin: 0px auto 10px; text-align: center;" /></a></div>
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नीम भारतीय मूल का एक सदाबहार वृक्ष है। यह सदियों से समीपवर्ती देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यानमार (बर्मा), थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका आदि देशों में पाया जाता रहा है।<br/>
<a href='https://pentagan.blogspot.in/2016/04/blog-post_68.html'>यह भी पढ़ें</a><br/>
<b>नीम के फायदे :</b><br/>
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• नीम के पेड़ पूरे दक्षिण एशिया में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है।<br/>
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• भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। नीम हमारे लिए अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञान में ‘आज़डिरेक्टा- इण्डिका (Azadirecta-indica) अथवा Melia azadirachta कहते है।<br/>
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<b>नीम के गुण :</b><br/>
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यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिन, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम सर्व रोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मज़बूत रहते हैं।<br/>
<br/>
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़ बीमारियों वगैरह से आज़ाद होता है और उस पर कोई कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आज़ाद पेड़ कहा जाता है। <br/>
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भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-<br/>
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निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर को अग्नी वातनुत।<br/>
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥<br/>
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<b>अर्थात :</b> नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।<br/>
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<b>नीम के घरेलू उपयोग :</b><br/>
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• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।<br/>
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है।<br/>
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।<br/>
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।<br/>
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।<br/>
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।<br/>
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।<br/>
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।<br/>
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।<br/>
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।<br/>
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।<br/>
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप बालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।<br/>
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।<br/>
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।<br/>
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।<br/>
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।<br/>
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।<br/>
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।<br/>
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।<br/>
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।<br/>
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।<br/>
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।<br/>
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।<br/>
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा ठीक हो जाता है।<br/>
• निबोळी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।<br/>
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।<br/>
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।<br/>
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।<br/>
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।<br/>
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नीम के उपयोग से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है, आप सभी से निवेदन है कि आप नीम जैसी औषधि का अपने घर में जरूर प्रयोग करे और देश के विकास में सहयोग दे और स्वस्थ भारत और प्रगतिशील भारत का निर्माण करे और अपने धन को विदेशी कम्पनियों के पास जाने से रोकें।
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<b> स्रोत:- इन्टरनेट</b>
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नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है।<br/>
यहाँ तक कि इसको भारत में <b>‘गांव का दवाखाना’</b> कहा जाता है। यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है। नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराबन होने वाला।’<br/>
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नीम के अर्क में मधुमेह यानी डायबिटिज, बैक्टिरिया और वायरस से लड़ने के गुण पाए जाते हैं। नीम के तने, जड़, छाल और कच्चे फलों में शक्ति-वर्धक और मियादी रोगों से लड़ने का गुण भी पाया जाता है। इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होती है।<br/>
नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं। इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं। इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है।<br/>
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नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लड़ने के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं। प्राकृतिक चिकित्सा की भारतीय प्रणाली ‘आयुर्वेद’ के आधार-स्तंभ माने जाने वाले दो प्राचीन ग्रंथों ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में इसके लाभकारी गुणों की चर्चा की गई है। <br/>
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इस पेड़ का हर भाग इतना लाभकारी है कि संस्कृत में इसको एक यथा योग्य नाम दिया गया है – <b>“सर्व-रोग-निवारिणी”</b> यानी ‘सभी बीमारियों की दवा।’ <br/>
लाख दुखों की एक दवा!<br/>
सद्गुरु:<br/>
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<b>“इस धरती की तमाम वनस्पतियों में से नीम ही ऐसी वनस्पति है, जो सूर्य के प्रतिबिम्ब की तरह है।”</b><br/>
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<b>इस पृथ्वी पर जीवन सूर्य की शक्ति से ही चलता है…..सूर्य की ऊर्जा से जन्मे तमाम जीवों में नीम ने ही उस ऊर्जा को सबसे ज्यादा ग्रहण किया है।</b><br/>
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इसीलिए इसे रोग-निवारक समझा जाता है – किसी भी बीमारी के लिए नीम रामबाण दवा है। नीम के एक पत्ते में 150 से ज्यादा रासयानिक रूप या प्रबंध होते हैं। <br/>
<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-8sfGzoKjHjY/VwgCIlzcEzI/AAAAAAAAAIg/mbuAvEsbk-Y/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-8sfGzoKjHjY/VwgCIlzcEzI/AAAAAAAAAIg/mbuAvEsbk-Y/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br/>
<b>इस धरती पर मिलने वाले पत्तों में सबसे जटिल नीम का पत्ता ही है। नीम की केमिस्ट्री सूर्य से उसके लगाव का ही नतीजा है।</b><br/>
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नीम के पत्तों में जबरदस्त औषधीय गुण तो है ही, साथ ही इसमें प्राणिक शक्ति भी बहुत अधिक है। अमेरिका में आजकल नीम को चमत्कारी वृक्ष कहा जाता है। दुर्भाग्य से भारत में अभी लोग इसकी ओर ध्यान नहीं दे हैं। अब वे नीम उगाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि नीम को अनगिनत तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आपको मानसिक बिमारी है, तो भारत में उसको दूर करने के लिए नीम के पत्तों से झाड़ा जाता है। अगर आपको दांत का दर्द है, तो इसकी दातून का इस्तेमाल किया जाता है। अगर आपको कोई छूत की बीमारी है, तो नीम के पत्तों पर लिटाया जाता है, क्योंकि यह आपके सिस्टम को साफ कर के उसको ऊर्जा से भर देता है। अगर आपके घर के पास, खास तौर पर आपकी बेडरूम की खिड़की के करीब अगर कोई नीम का पेड़ है, तो इसका आपके ऊपर कई तरह से अच्छा प्रभाव पड़ता है।<br/>
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<b>बैक्टीरिया से लड़ता है नीम</b><br/>
<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-uPWCow9iuWU/VwgCOZtwGmI/AAAAAAAAAIo/c-OELA66idM/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-uPWCow9iuWU/VwgCOZtwGmI/AAAAAAAAAIo/c-OELA66idM/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br/>
दुनिया बैक्टीरिया से भरी पड़ी है। हमारा शरीर बैक्टीरिया से भरा हुआ है। एक सामान्य आकार के शरीर में लगभग दस खरब कोशिकाएँ होती हैं और सौ खरब से भी ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं। आप एक हैं, तो वे दस हैं। आपके भीतर इतने सारे जीव हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इनमें से ज्यादातर बैक्टीरिया हमारे लिए फायदेमंद होते हैं। इनके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। अगर आप नीम का सेवन करते हैं, तो वह हानिकारक बैक्टीरिया को आप की आंतों में ही नष्ट कर देता है।<br/>
आपके शरीर के भीतर जरूरत से ज्यादा बैक्टीरिया नहीं होने चाहिए। अगर हानिकारक बैक्टीरिया की तादाद ज्यादा हो गई तो आप बुझे-बुझे से रहेंगे, क्योंकि आपकी बहुत-सी ऊर्जा उनसे निपटने में नष्ट हो जाएगी। नीम का तरह-तरह से इस्तेमाल करने से बैक्टीरिया के साथ निपटने में आपके शरीर की ऊर्जा खर्च नहीं होती।<br/>
आप नहाने से पहले अपने बदन पर नीम का लेप लगा कर कुछ वक्त तक सूखने दें, फिर उसको पानी से धो डालें। सिर्फ इतने से ही आपका बदन अच्छी तरह से साफ हो सकता है – आपके बदन पर के सारे बैक्टीरिया नष्ट हो जाएंगे। या फिर नीम के कुछ पत्तों को पानी में डाल कर रात भर छोड़ दें और फिर सुबह उस पानी से नहा लें ।<br/>
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<b>एलर्जी के लिए नीम</b><br/>
नीम के पत्तों को पीस कर पेस्ट बना लें, उसकी छोटी-सी गोली बना कर सुबह-सुबह खाली पेट शहद में डुबा कर निगल लें। उसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं, जिससे नीम ठीक तरह से आपके सिस्टम से गुजर सके। यह हर प्रकार की एलर्जी – त्वचा की, किसी भोजन से होने वाली, या किसी और तरह की – में फायदा करता है। आप सारी जिंदगी यह ले सकते हैं, इससे कोई नुकसान नहीं होगा। नीम के छोटे-छोटे कोमल पत्ते थोड़े कम कड़वे होते हैं, वैसे किसी भी तरह के ताजा, हरे पत्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है।<br/>
<a href='https://lh3.googleusercontent.com/-HIfmXoh8wME/VwgCL6sw7uI/AAAAAAAAAIk/TLOq1Th25Hk/s2560/%25255BUNSET%25255D.jpg' onblur='try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}'><img border='0' src='https://lh3.googleusercontent.com/-HIfmXoh8wME/VwgCL6sw7uI/AAAAAAAAAIk/TLOq1Th25Hk/s640/%25255BUNSET%25255D.jpg' style='display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;'/></a><br/>
<b>बीमारियों के लिए नीम</b><br/>
नीम के बहुत-से अविश्वसनीय लाभ हैं, उनमें से सबसे खास है – यह कैंसर-कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। हर किसी के शरीर में कैंसर वाली कोशिकाएं होती हैं, लेकिन वे एक जगह नहीं होतीं, हर जगह बिखरी होती हैं। किसी वजह से अगर आपके शरीर में कुछ खास हालात बन जाते हैं, तो ये कोशिकाएं एकजुट हो जाती हैं। छोटे-मोटे जुर्म की तुलना में संगठित अपराध गंभीर समस्या है, है कि नहीं? हर कस्बे-शहर में हर कहीं छोटे-मोटे मुजरिम होते ही हैं।<br/>
यहां-वहां वे जेब काटने जैसे छोटे-मोटे जुर्म करते हैं, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन किसी शहर में अगर ऐसे पचास जेबकतरे एकजुट हो कर जुर्म करने लगें, तो अचानक उस शहर का पूरा माहौल ही बदल जाएगा। फिर हालत ये हो जाएगी कि आपका बाहर सड़क पर निकलना खतरे से खाली नहीं होगा। शरीर में बस ऐसा ही हो रहा है। कैंसर वाली कोशिकाएं शरीर में इधर-उधर घूम रही हैं। अगर वे अकेले ही मस्ती में घूम रही हैं, तो कोई दिक्कत नहीं। पर वे सब एक जगह इकट्ठा हो कर उधम मचाने लगें, तो समस्या खड़ी हो जाएगी। हमें बस इनको तोड़ना होगा और इससे पहले कि वे एकजुट हो सकें, यहां-वहां इनमें से कुछ को मारना होगा। अगर आप हर दिन नीम का सेवन करें तो ऐसा हो सकता है; इससे कैंसर वाली कोशिकाओं की तादाद एक सीमा के अंदर रहती है, ताकि वे हमारी प्रणाली पर हल्ला बोलने के लिए एकजुट न हो सकें। इसलिए नीम का सेवन बहुत लाभदायक है।<br/>
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नीम में ऐसी भी क्षमता है कि अगर आपकी रक्त धमनियों(आर्टरी) में कहीं कुछ जमना शुरु हो गया हो तो ये उसको साफ कर सकती है। मधुमेह(डायबिटीज) के रोगियों के लिए भी हर दिन नीम की एक छोटी-सी गोली खाना बहुत फायदेमंद होता है। यह उनके अंदर इंसुलिन पैदा होने की क्रिया में तेजी लाता है।<br/>
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<b>साधना के लिए नीम</b><br/>
नीम आप के सिस्टम को साफ रखने के साथ उसको खोलने में भी खास तौर से लाभकारी होताहै। इन सबसे बढ़ कर यह शरीर में गर्मी पैदा करता है। शरीर में इस तरह की गर्मी हमारे अंदर साधना के द्वारा तीव्र और प्रचंड ऊर्जा पैदा करने में बहुत मदद करती है।
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<b>स्रोत:- इन्टरनेट</b>
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