जैविक खेती के लिए खाद निर्माण (Fertilizer making for Organic Farming)

दोस्तों आपने पिछली पोस्ट में पढ़ा की जैविक खेती क्या होती है? आज में आपको बताऊंगा कि जैविक खेती में काम में आने वाली खाद कैसे बनाते हैं तो दोस्तों जानिए और जैविक खेती करिये।

दोस्तों जैसा कि आपको पता ही है कि आज के समय में जैविक खेती एक बहुत ही आवश्यक चीज़ हो गईं है क्योकि खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा। इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी। प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा।

जैविक खाद बनाने की विधि:-

अब हम खेती में इन सूक्ष्म जीवाणुओं का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वों की पूर्ति हेतु मदद लेंगे। खेतों में रसायनों से ये सूक्ष्म जीव क्षतिग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल में हमें इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे फसलों को पोषण तत्व उपलब्ध हो सकें।
दलहनी फसलों में प्रति एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोबियम कल्चर डालना पड़ेगा। एक दलीय फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर इनती ही मात्रा में डालें। साथ ही भूमि में जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रति एकड़ डालना होगा।


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खाद बनाने के लिये कुछ तरीके नीचे दिये जा रहे हैं, इन विधियों से खाद बनाकर खेतों में डालें। इस खाद से मिट्टी की रचना में सुधार होगा, सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ेगी एवं हवा का संचार बढ़ेगा, पानी सोखने एवं धारण करने की क्षमता में भी वृध्दि होगी और फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा। फसलों एवं झाड पेड़ों के अवशेषों में वे सभी तत्व होते हैं, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है :-

*#नाडेप विधि:-

नाडेप का आकार :-
लम्बाई 12 फीट    
चौड़ाई 5 फीट   
उंचाई 3 फीट आकार का गड्डा कर लें।
भरने हेतु सामग्री :- 
75 प्रतिशत वनस्पति के सूखे अवशेष, 20 प्रतिशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल,5 प्रतिशत गोबर, 2000 लिटर पानी ।सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ों में हो। गोबर को पानी से घोलकर कचरे को खूब भिगो दें । फावडे से मिलाकर गड्ड-मड्ड कर दें ।

विधि नंबर -1
नाडेप में कचरा 4 अंगुल भरें। इस पर मिट्टी 2 अंगुल डालें। मिट्टी को भी पानी से भिगो दें। जब पुरा नाडेप भर जाये तो उसे ढ़ालू बनाकर इस पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढ़ांप दें।
विधि नंबर-2-
कचरे के ऊपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत बिछाकर पानी से भिंगो दें। इसके ऊपर 1 अंगुल मोटी मिट्टी बिछाकर पानी डालें। गङ्ढा पूरा भर जाने पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढांप दें।
विधि नंबर-3-
कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर बिछायें। इस खाद नाडेप कम्पोस्ट में 60 दिन बाद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फुट पर छेद कर 15 टीन पानी में 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को घोलकर छेदों में भर दें। इन छेदों को मिट्टी से बंद कर दें।

*# वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद):-

मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को लंबे समय तक बनाये रखने में पोषक तत्वों के संतुलन का विशेष योगदान है, जिसके लिए फसल मृदा तथा पौध पोषक तत्वों का संतुलन बनाये रखने में हर प्रकार के जैविक अवयवों जैसे- फसल अवशेष, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, जीवाणु खाद इत्यादि की अनुशंसा की जाती है वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिए केंचुओं को विशेष प्रकार के गड्ढों में तैयार किया जाता है तथा इन केचुओं के माध्यम से अनुपयोगी जैविक वानस्पतिक जीवांशो को अल्प अवधि में मूल्यांकन करके जैविक खाद का निर्माण करके, इसके उपयोग से मृदा के स्वास्थ्य में आशातीत सुधार होता है एवं मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है जिससे फसल उत्पादन में स्थिरता के साथ गुणात्मक सुधार होता है इस प्रकार केंचुओं के माध्यम से जो जैविक खाद बनायी जाती है उसे वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिए आवश्यक अवयव

1.केंचुओं का चुनाव –
एपीजीक या सतह पर निर्वाह करने वाले केंचुए जो प्राय: भूरे लाल रंग के एवं छोटे आकार के होते है, जो कि अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते है।
2.नमी की मात्रा –
केंचुओं की अधिक बढ़वार एवं त्वरित प्रजनन के लिए 30 से 35 प्रतिशत नमी होना अति आवश्यक है।
3.वायु –
केंचुओं की अच्छी बढ़वार केलिए उचित वातायन तथा गड्ढे की गहराई ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
4.अंधेरा –
केंचुए सामान्यत: अंधेरे में रहना पसंद करते हैं अत: केचुओं के गड्ढों के ऊपर बोरी अथवा छप्पर युक्त छाया या मचान की व्यवस्था होनी चाहिए।
5.पोषक पदार्थ –
इसके लिए ऊपर बताये गये अपघटित कूड़े-कचरे एवं गोबर की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

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केंचुओं में प्रजनन :–
उपयुक्त तापमान, नमी खाद्य पदार्थ होने पर केंचुए प्राय: 4 सप्ताह में वयस्क होकर प्रजनन करने लायक बन जाते है। व्यस्क केंचुआ एक सप्ताह में 2-3 कोकून देने लगता है एवं एक कोकून में 3-4 अण्डे होते हैं। इस प्रकार एक प्रजनक केंचुए से प्रथम 6 माह में ही लगभग 250 केंचुए पैदा होते है।

वर्मीकम्पोस्ट के लिए केंचुए की मुख्य किस्में:-
1.आइसीनिया फोटिडा
2.यूड्रिलस यूजीनिया
3.पेरियोनेक्स एक्जकेटस

गड्ढे का आकार :–
(40’x3’x1’) 120 घन फिट आकार के गड्ढे से एक वर्ष में लगभग चार टन वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त होती है। तेज धूप व लू आदि से केंचुओं को बचाने के लिए दिन में एक- दो बाद छप्परों पर पानी का छिड़काव करते रहें ताकि अंदर उचित तापक्रम एवं नमी बनी रहे।

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि:-
उपरोक्त आकार के गड्ढों को ढंकने के लिए 4 -5 फिट ऊंचाई वाले छप्पर की व्यवस्था करें, (जिसके ढंकने के लिए पूआल/ टाट बोरा आदि का प्रयोग किया जाता है) ताकि तेज धूप, वर्षा व लू आदि से बचाव हो सके। गड्ढे में सबसे नीचे ईटो के टुकडो छोटे पत्थरों व मिट्टी 1-3 इंच मोटी तह बिछाएं।

गड्ढा भरना :–
सबसे पहले दो-तीन इंच मोटी मक्का, ज्वार या गन्ना इत्यादि के अवशेषों की परत बिछाएं। इसके ऊपर दो- ढाई इंच मोटी आंशिक रूप के पके गोबर की परत बिछाएं एवं इसके ऊपर दो इंच मोटी वर्मी कम्पोस्ट जिसमें उचित मात्रा कोकुन (केंचुए के अण्डे) एवं वयस्क केंचुए हो, इसके बाद 4-6 इंच मोटी घास की पत्तियां, फसलों के अवशेष एवं गोबर का मिश्रण बिछाएं और सबसे ऊपर गड्ढे को बोरी या टाट आदि से ढक कर रखें। मौसम के अनुसार गड्ढों पर पानी का छिड़काव करते रहें। इस दौरान गड्ढे में उपस्थित केंचुए इन कार्बनिक पदार्थों को खाकर कास्टिंग के रूप में निकालते हुए केंचुए गड्ढे के ऊपरी सतह पर आने लगते है। इस प्रक्रिया में 3-4 माह का समय लगता है। गड्ढे की ऊपरी सतह का काला होना वर्मीकम्पोस्ट के तैयार होने का संकेत देता है। इसी प्रकार दूसरी बार गड्ढा भरने पर कम्पोस्ट 2-3 महीनों में तैयार होने लगती है।

उपयोग विधि :–
वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने के बाद इसे खुली जगह पर ढेर बनाकर छाया में सूखने देना चाहिए परन्तु इस बात का ध्यान रहे कि उसमें नमी बने। इसमें उपस्थित केंचुए नीचे की सतह पर एकत्रित हो जाते हैं। जिसका प्रयोग मदर कल्चर के रूप में दूसरे गड्ढे में डालने के लिए किया जा सकता है। सूखने के पश्चात वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग अन्य खादों की तरह बुवाई के पहले खेत/वृक्ष के थालों में किया जाना चाहिए।

फलदार वृक्ष :–
बड़े फलदार वृक्षों के लिए पेड़ के थालों में 3-5 किलो वर्मीकम्पोस्ट मिलाएं एवं गोबर तथा फसल अवशेष इत्यादि डालकर उचित नमी की व्यवस्था करें।
सब्जी वाली फसलें:-
2-3 टन प्रति एकड़ की दर वर्मीकम्पोस्ट खेत में डालकर रोपाई या बुवाई करें।
मुख्य फसलें :–
सामान्य फसलों के लिए भी 2-3 टन वर्मी कम्पोस्ट उपयोग बुवाई के पूर्व करें।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ
1.जैविक खाद होने के कारण वर्मीकम्पोस्ट में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता अधिक होती है जो भूमि में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिये लाभदायक एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।2.वर्मीकम्पोस्ट में उपस्थित पौध पोषक तत्व पौधों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
3.वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से मृदा की जैविक क्रियाओं में बढ़ोतरी होती है।
4.वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से मृदा में जीवांश पदार्थ (हयूमस) की वृद्धि होती है, जिससे मृदा संरचना, वायु संचार तथा की जल धारण क्षमता बढ़ने के साथ-साथ भूमि उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।
5.वर्मीकम्पोस्ट के माध्यम से अपशिष्ट पदार्थों या जैव अपघटित कूड़े-कचरे का पुनर्चक्रण (रिसैकिलिंग) आसानी से हो जाता है।
6.वर्मीकम्पोस्ट जैविक खाद होने के कारण इससे उत्पादित गुणात्मक कृषि उत्पादों का मूल्य अधिक मिलता है।

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*#मटका खाद:-
गौ मूत्र 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड 500 ग्राम, बेसन 500 ग्राम- सभी को मिलाकर मटके में भकर 10 दिन सड़ायें फिर 200 लीटर पानी में घोलकर गीली जमीन पर कतारों के बीच छिटक दें । 15 दिन बाद पुन: इस का छिड़काव करें।

स्रोत:- विकासपीडिया

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जैविक खेती के लिए खाद निर्माण (Fertilizer making for Organic Farming) जैविक खेती के लिए खाद निर्माण (Fertilizer making for Organic Farming) Reviewed by Mukesh kumar Pareek on 5/27/2016 Rating: 5

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